प्रतापगढ़ के राजकीय स्नातकोत्तर महाविद्यालय में नए एडमिशन शुरू हो गए हैं, लेकिन स्टाफ वहीँ का वहीँ है. पढ़ने वालों की सीटें बढ़ाई जा रही हैं, पर लेक्चरार नहीं. ऐसे में एक बार फिर यहाँ पढ़ाई पर ग्रहण लगता नज़र आ रहा है.
सरकार शिक्षा को बढ़ावा देने के प्रयास कर रही है, लेकिन प्रतापगढ़ में तो हाल वैसे के वैसे ही हैं. इस ग्रामीण जिले में शिक्षा को बढ़ावा देने की जरूरत अन्य इलाको की तुलना में काफी ज्यादा है, पर होता कुछ नहीं है. हर साल की तरह इस साल भी जिले के सबसे बड़े राजकीय स्नातकोत्तर महाविद्यालय यानि पीजी कोलेज में नए एडमिशन शुरू हो गए हैं. 1 जून से ऑनलाइन एडमिशन शुरू हो गए हैं जो 15 जून तक जारी रहेंगे. इस बार तो महाविद्यालय प्रबंधन ने सीटों में भी इजाफा किया है. अब आर्ट्स में 10 सेक्शन में कुल 800, साइंस में 2 सेक्शन में कुल 140 और कोमर्स में 1 सेक्शन में कुल 80 एडमिशन होंगे. इसके अलावा पीजी में उपलब्ध एक मात्र सब्जेक्ट आर्ट्स में 40 सीटें एडमिशन होंगे. लेकिन सवाल यह... कि स्टाफ है नहीं, तो पढ़ाई होगी कैसे? यहाँ स्वीकृत 44 में से 16 पद कार्यरत है. यानि कि 16 व्याख्याता और 1000 से ज्यादा बच्चे. यही नहीं, साइंस में 140 सीटें है और बोटनी और होम साइंस में एक भी व्याख्याता नहीं है. ऐसी स्थिति में एडमिशन के साथ-साथ सीटें बढ़ाना छात्र-छात्रों को बेवकूफ बनाने जैसा लग रहा है. इस कोलेज में जिले भर से पढ़ाई के लिए छात्र-छात्राएं आते हैं. प्राचार्य सुआ लाल परिहार का कहना है कि कई बार वे सरकार को व्याख्याताओं के लिए लिख चुके हैं, पर हाल जस के तस बने हुए हैं.
प्रतापगढ़ जिले के साथ शिक्षा के मामले में कभी न्याय नहीं हुआ है. प्राइमरी स्कूल से लगाकर कोलेज तक पढाने वालों का टोटा है. पढ़ने वाले तो बढ़ रहे हैं, पर पढाने वाले नहीं. ऐसी हालत में यहाँ के छात्र-छात्रों को पढ़ने बाहर जाना पड़ रहा है. सरकार को इस ओर गंभीर होने की ज़रूरत है.
No comments:
Post a Comment