Saturday, March 26, 2016

प्रतापगढ़ शहर में नहीं खेली गई होली. पुरानी परंपरा के चलते सुने रहा माहौल. अब रंग-तेरस पर बिखरेंगे होली के रंग.

जब पूरा देश होली के रंगों में सराबोर है, तब प्रतापगढ़ सुनसान! जब हर जगह होली पर लोग एक दूसरे को रंग-गुलाल लगते हैं, फाग के गीत गए जाते हैं, गीतों की मस्ती में लोग झूमते हैं, तब प्रतापगढ़ पूरा सुनसान रहता है...

होली और धुलेंडी का दिन नजदीक आने पर पूरे देश में जहां खुशी और मस्ती का माहौल रहता है ....छोटे-छोटे बच्चें हाथों में पिचकारियाँ लेकर पानी की बोछारों से एक दूसरों को भिगो देते है, सभी एक दूसरे पर रंग और गुलाल लगा कर खुश होते है, लेकिन प्रदेश में प्रतापगढ़ ही एक ऐसा इलाका है, जहां यह सब नहीं होता है. प्रतापगढ़ और आस पास के ग्रामीण इलाको में लोग होलिका दहन तो करते हैं, लेकिन दूसरे दिन धुलेंडी का पर्व नहीं मनाते है...

प्रतापगढ़ में होली नहीं खेली जाती! कारण- राजपरिवार में हुई मौत... आज भी प्रतापगढ़ में उस मौत का मातम होता है, और होली नहीं खेली जाती ... प्रतापगढ़ के लोग होली नहीं खेलते, वो इसलिए क्योकि यहाँ रियासतकाल में राज परिवार में हुई मौत का मातम आज भी मनाया जाता है... रियासतकालीन दौर में जब प्रतापगढ़ भी एक रिसासत थी. तब कभी यहाँ पर भी रंगों का यह त्यौहार बड़े उमंग और उत्साह के साथ मनाया जाता था.. राजपरिवार में 150-160 साल पहले राजा रामसिंह तत्कालीन महाराजा थे, उस समय राजपरिवार के किसी सदस्य की होली के दौरान मौत हो गई थी, इसलिए इस दिन लोगों ने होली मनाना छोड़ दिया. यहाँ धुलंडी और होली... रंग तेरस के दिन मनाई जाती है. आज के दिन यहाँ के बाजार बिलकुल सुनसान रहते हैं. होली की चका-चौंध यहाँ नहीं होती. यहाँ हर तरफ बस शांति-शांति होती है. शहर के मुख्य बाज़ार हों या गली-मोहल्ले हर जगह सन्नाटा पसरा रहता है. यहाँ के लोग आज का दिन एक आम दिन की तरह मनाते हैं...
हिंदू संस्कृति में परिवार के किसी सदस्य की मौत होने पर बारह दिनों तक शोक रहता है. कोई खुशी का कार्यक्रम नहीं होता. तेरहंवे दिन उस शोक का निवारण किया जाता है. राजपरिवार में हुई उस घटना के तेहरवें दिन यहाँ पर रंग तेरस का पर्व मनाया जाने लगा. तब ही से यहाँ लोग तेरस को ही रंग-तेरस के रूप में धुलेंडी पर्व मनाते है और एक दूसरे पर रंग और गुलाल लगाते है...

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