प्रतापगढ़ का जिला रोजगार विभाग महज़ एक चपरासी और निविदा पर लगे कंप्यूटर ऑपरेटर के भरोसे चल रहा है. जिस चपरासी के भरोसे है, उसका भी 29 जनवरी को रिटायरमेंट होने वाला है. यहाँ इसके अलावा सारे पद खाली पड़े हैं. जिस वजह से यहाँ बेरोजगारी भत्ता, पंजीयन, लोन, नवीनीकरण और बिल सम्बन्धी काम अटके रहते हैं. बेरोजगार आस लेकर विभाग तो आते हैं, लेकिन अधिकारी नहीं मिलने पर निराश घर लौट जाते हैं. आंकडो की मानें तो रोजाना 20 बेरोजगार कार्यलय आते हैं, यानि महीने में करीब 600! अंडको पर नज़र डालते हैं, जो बयां कर रहे हैं कितने कम लोगों को अभी तक लाभ दिया गया है--
2013 में 658 बेरोजगारों का प्राथमिक चयन हुआ और 531 को प्रारंभिक प्रशिक्षण दिया गया...
2014 में 542 बेरोजगारों का प्राथमिक चयन हुआ और 835 को प्रारंभिक प्रशिक्षण दिया गया...
2015 में 550 बेरोजगारों का प्राथमिक चयन हुआ और 1000 को प्रारंभिक प्रशिक्षण दिया गया...
अब तक विभाग 1200 बेरोजगारों को काम दे चूका है इसके अलावा 350 की फ़ाइल पेंडिंग चल रही है
विभाग में जिला अधिकारी का पद 2011 से ही खाली चल रहा है. अभी चित्तोद्गढ़ के जिला रोजगार अधिकारी आलोक शुक्ल को प्रतापगढ़ का अतिरिक्त कार्यभार सौंपा है, जो महीने में एक-दो बार ही आते हैं... इसके अलावा UDC का पद भी खली है.
सरकार का कोई भी विभाग को कर्मचारियों के अभाव में प्रभावी रूप से काम नहीं कर पाता... ऐसे में ज़हन में यह विचार आता है कि जिस विभाग में खुद ही नौकरियां ना हो, वो दूसरों को नौकरी क्या देगा! ज़रूरत है कि यहाँ कर्मचारियों और अधिकारी की नियुक्ति हो, ताकि बेरोजगारों को लाभ मिल सके.
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