यह बच्चा जिसका नाम घनश्याम है, गंभीर हालत में अस्पताल पहुंचा. यह गुज़रे दो दिनों से बीमार था. बच्चों ने वार्डन को बताया भी लेकिन सुनवाई नहीं हुई, ऐसे में बच्चों ने 108 एम्बुलेंस को कॉल लगाया और जिला चिकित्सालय लेकर पहुंचे. हमने जब पड़ताल की और अन्य बच्चों से बात की- तो सारी कहानी बेपर्दा हो गई!
यह है जिला मुख्यालय स्थित समाज कल्याण विभाग का बालक छात्रावास. जिसे राजकीय अम्बेडकर बालक छात्रावास के नाम से भी जाना जाता है. यहाँ करीब 80 बच्चे रहते हैं. यह आदिवासी बच्चो का छात्रावास है, ताकि आस-पास के ग्रामीण इलाकों से बच्चे यहाँ आके पढ़ सके. लेकिन यहाँ के बच्चों को जो खाना खिलाया जाता है, उसमें कीड़े निकलते हैं. सड़ी हुई रोटियां परोसी जाती, शौचालय की महीनों से सफाई नहीं हुई, जब बच्चे बीमार होते है तो उन्हें अस्पताल तक नहीं लाया जाता...
दूषित खाने के चलते यहाँ लगातार बच्चे बीमार हो रहे हैं. आंकडो पर नज़र डाली जाए तो अब तक कुल 12 बच्चे बीमार होकर अस्पताल पहुँच चुके हैं. वहीँ लगभग आधे बच्चे होस्टल छोड़ घर चले गए हैं. बच्चों का यह भी आरोप है कि यहाँ सरकार द्वारा आने वाले फंड में घोटाला हो रहा है. बच्चों को सस्ते कपडे और जुटे पहनाए जा रहे हैं. इसके अलावा दूध में 95% पानी होता है, जिसे वे ठीक से पी तक नहीं पाते. जूतों के लिए हर बच्चे पर 600 रूपए का बजट आया था, लेकिन इसमें भी घपलेबाजी सामने आती है. 600 की वजह 200 वाले जुटे ही पहनाए जाते हैं, जो महीने-दो महीने में ही टूट जाते हैं.
इन बच्चों की बातें सुन अंदाज़ा लग गया होगा कि किस कदर बच्चों पर सरकारी छात्रावासों में ज़ुल्म ढाए जाते हैं. गन्दा खाना खिलाया जाता है, फिर बीमार होते हैं तो अस्पताल भी नहीं ले जाते! यह असल तस्वीर है उन आदिवासी इलाकों के छात्रावासों की, जहाँ माता-पिता के पास और कोई रास्ता नहीं होता... गरीबी के चलते उन्हें मजबूरन यहीं उनका एडमिशन करना होता है. अब आलाधिकारियों को चाहिए कि ऐसे भ्रष्ट वार्ड के खिलाफ सख्ती से कार्रवाई करे, ताकि बच्चों को उनका हक मिल सके.