प्रतापगढ़ का वन क्षेत्र जो कि बेहद घना और विस्तृत था, अब चंद दायरे में सिमट कर रहा गया है. यहाँ कोयला माफिया जंगल पर कहर बरपा रहा है. गर्मी की शुरुआत से ही जंगल में आग की घटनाएँ बढ़ जाती है. गुज़रे दो माह में जिले में विभिन्न जंगलो में आग लगने के 30 से ज्यादा मामले सामने आ चुके हैं. अब तक जिले में प्रतापगढ़, पीपलखूंट और धरियावद उपखंड के कई जंगलो में आग लग चुकी है... और इस काम के लिए शाम के वक्त को चुना जाता है ताकि आग पर काबू नहीं पाया जा सके. कोयला माफिया शाम के वक्त जंगल में आग लगाता है, इसके बाद रात भर जंगल आग में जलता है. यह आग अगले दिन भी जारी रहती है. जिस पर काबू पाना लगभग नामुमकिन ही होता है. जंगल में आग लगने के बाद जले हुए पेड़ों से ये लोग कोयला बटोरते हैं, और फिर प्रतापगढ़ शहर आकर इनका व्यापार करते हैं. ये कोयला बेहद सस्ता होता है और इसीलिए खूब बिकता है. इसका उपयोग अधिकतर भट्टी चलाने वाले, होटल-ढाबों वाले, तंदूर रोटी बनाने वाले और यहाँ तक कि सुनार भी करते हैं. प्रतापगढ़ जिले का अधिकांश वन क्षेत्र ऐसा है जहाँ फायर ब्रिगेड के जाने की भी कोई व्यवस्था नहीं है. तो वहीँ वन विभाग के पास कर्मचारी भी बेहद सिमित है. ऐसे में जंगल में लगी आग अपने आप ही बुझती है...
जरुरी है कि आम ग्रामीण इस ओर जागरूक हों. क्योकि इस पर लगाम लगा पाना वन विबाग के बस की नहीं है. इतने बड़े स्तर पर आग की घटनाएँ लोगो के जागरूक होने के बाद ही रुक सकती हैं. वन क्षेत्र में आग की घटनाओं से जिले का वन क्षेत्र लगातार कम हो रहा है. वन क्षेत्र में आग लगने से जंगली जानवर भी आबादी की ओर रुख कर लेते है. अगर ऐसा ही जारी रहा तो हम इन बेशकीमती जंगलो को हमेशा के लिए खो देंगे. फिर इतने बड़े स्तर पर जंगल स्थापित करना असंभव ही होगा...
No comments:
Post a Comment