साम-दाम-दंड-भेद! सारे पैतरे... सीटें भी मिली... लेकिन फिर भी... नतीजा- फ़ैल! यही हाल हुआ कोंग्रेस पार्टी का. सीटें पर्याप्त थी, फिर भी सभापति भाजपा के बन गए. आपसी फूट कोंग्रेस को ले डूबी! कमलेश डोशी एक बार फिर प्रतापगढ़ में सभापति बने, जिससे पूरे शहर में अब जश्न का माहौल है.
दस दिनों पहले का माहौल कुछ यूँ था- कि हर कोई कह रहा था, इस बार कोंग्रेस आनी है. और उम्मीद होती भी क्यों न, कोंग्रेस पार्टी जनता से जुड़े कई अहम् मुद्दों को लेकर चुनाव लड़ रही थी. और एक नौजवान चेहरे "सुरेन्द्र चंडालिया" को सभापति पद का चेहरा बनाया गया, जो वार्ड नंबर 24 से चुनाव लड़ रहे थे. चुनाव में दोनों ही पार्टी के कार्यकर्ताओं ने सारी ताकत फूंक दी... चुनाव जीतने में किसी ने कोई कोर-कसर नहीं छोड़ी. लेकिन जब नतीजे आए, तो सबके होश उड़ गए. कोंग्रेस से सभापति पद के दावेदार चंडालिया खुद ही अपने वार्ड से 26 मतों से हार गए. हालांकि कोंग्रेस को 16 सीटें और भाजपा को 14 सीटें मिली. कोंग्रेस के पास अब पर्याप्त सीटें थी, जिससे वे अपना सभापति आराम से बना सकते थे. लेकिन अब विडम्बना की स्थिति पैदा होने लगी. पार्टी ऐसे चेहरे को ढूंढ रही थी, जो सभापति बनने के लायक हो. क्योंकि चंडालिया के अलावा पार्टी के कई दिग्गज जैसे - रवि ओझा, सुनील मेहता, लता शर्मा अपने वार्ड से हार चुके थे. कुछ ही पलों में पार्टी के वरिष्ट नेता और पूर्व पालिकाध्यक्ष "सुरेन्द्र बोर्दिया" का नाम सभापति के लिए जोरों-शोरों से लिया जाने लगा, जो कि वार्ड नंबर 29 से 135 मतों से जीते थे. बोरदिया का नाम सामने आया, तो पार्टी में विरोध के सुर सुनाई देने लगे. और रातों-रात हुए फैसले के बाद सवेरे माहौल पूरी तरह बदल गया. कोंग्रेस के जीते हुए सभी पार्षद चंडालिया की शह पर चुनाव लड़ रहे थे, और बोरदिया को समर्थन देने को राज़ी नहीं थे. मजबूरी में पार्टी को नया फैसला लेना पड़ा- पार्टी ने "नेहा शर्मा" को सभापति के लिए आगे किया, जो कि राजनीती में नया चेहरा हैं. अब पार्टी के पास सीटें भी थी, और सभापति के लिए सही उम्मीदवार भी. लेकिन एक फ़िक्र भी, कि कहीं आपसी विवाद के चलते क्रोस-वोटिंग न हो जाए. सभापति का चुनाव शुरू हुआ और क्रोस-वोटिंग हुई. लिहाज़ा अब भाजपा और कोंग्रेस के पास बराबर 15-15 मत थे. इस स्थिति के पैदा होने से भाजपा से सभापति पद के दावेदार कमलेश डोशी का भाग्य चमक उठा. इस दरमियान नगर परिषद कार्यालय के बाहर जम कर दोनों पार्टी के कार्यकर्ता जश्न मना रहे थे. पूरा माहौल जश्न में डूबा था. एक तरफ कोंग्रेस वाले, तो एक तरफ भाजपा वाले झूम रहे थे. दोनों पार्टी को उम्मीद थी, कि सभापति उन्ही का बनेगा. लेकिन अचानक नतीजा आया... नतीजा यह कि लोटरी में भाजपा के कमलेश डोशी जीत हांसिल कर चुके थे, और इस तरह फिर उन्हें सभापति की गद्दी हांसिल हो गई... भावुक मन से सभापति नगर परिषद के बाहर आए. और सभी को धन्यवाद दिया. इसके बाद तो मानों पूरा माहौल ही बदल गया. कोंग्रेस कार्यकर्त्ता लौटने लगे, तो वहीँ भाजपा कार्यकर्त्ता झूमते नहीं थके. नगरपरिषद के बाहर और शहरभर में कमलेश डोशी के नाम पर जश्न मनाया जाने लगा, और इस तरह एक नया इतिहास प्रतापगढ़ के पन्नों में दर्ज हो गया. इस चुनाव ने एक बात साफ़ कर दी- जनता का मत लेना आसान नहीं है, अब जनता शराब-पैसे से नहीं बिकती...! अब लोग अपना फैसला सोच-समझ कर लेना सीख गए हैं. इस चुनाव ने एक तरफ भाजपा के लिए फिर नए आयाम खोल दिए हैं, तो वहीँ कोंग्रेस को सीख दी है. पर्याप्त सीटें होने के बावजूद कोंग्रेस अपना सभापति नहीं बना पाई. और इस बात से अब कोंग्रेस का हर कार्यकर्त्ता ठगा हुआ महसूस कर रहा है. कोंग्रेसी अब इस खोज-बीन में लगे हुए हैं, कि आखिर वह कौन दगाबाज पार्षद था, जिसने भाजपा के समर्थन में मत दिया.
दस दिनों पहले का माहौल कुछ यूँ था- कि हर कोई कह रहा था, इस बार कोंग्रेस आनी है. और उम्मीद होती भी क्यों न, कोंग्रेस पार्टी जनता से जुड़े कई अहम् मुद्दों को लेकर चुनाव लड़ रही थी. और एक नौजवान चेहरे "सुरेन्द्र चंडालिया" को सभापति पद का चेहरा बनाया गया, जो वार्ड नंबर 24 से चुनाव लड़ रहे थे. चुनाव में दोनों ही पार्टी के कार्यकर्ताओं ने सारी ताकत फूंक दी... चुनाव जीतने में किसी ने कोई कोर-कसर नहीं छोड़ी. लेकिन जब नतीजे आए, तो सबके होश उड़ गए. कोंग्रेस से सभापति पद के दावेदार चंडालिया खुद ही अपने वार्ड से 26 मतों से हार गए. हालांकि कोंग्रेस को 16 सीटें और भाजपा को 14 सीटें मिली. कोंग्रेस के पास अब पर्याप्त सीटें थी, जिससे वे अपना सभापति आराम से बना सकते थे. लेकिन अब विडम्बना की स्थिति पैदा होने लगी. पार्टी ऐसे चेहरे को ढूंढ रही थी, जो सभापति बनने के लायक हो. क्योंकि चंडालिया के अलावा पार्टी के कई दिग्गज जैसे - रवि ओझा, सुनील मेहता, लता शर्मा अपने वार्ड से हार चुके थे. कुछ ही पलों में पार्टी के वरिष्ट नेता और पूर्व पालिकाध्यक्ष "सुरेन्द्र बोर्दिया" का नाम सभापति के लिए जोरों-शोरों से लिया जाने लगा, जो कि वार्ड नंबर 29 से 135 मतों से जीते थे. बोरदिया का नाम सामने आया, तो पार्टी में विरोध के सुर सुनाई देने लगे. और रातों-रात हुए फैसले के बाद सवेरे माहौल पूरी तरह बदल गया. कोंग्रेस के जीते हुए सभी पार्षद चंडालिया की शह पर चुनाव लड़ रहे थे, और बोरदिया को समर्थन देने को राज़ी नहीं थे. मजबूरी में पार्टी को नया फैसला लेना पड़ा- पार्टी ने "नेहा शर्मा" को सभापति के लिए आगे किया, जो कि राजनीती में नया चेहरा हैं. अब पार्टी के पास सीटें भी थी, और सभापति के लिए सही उम्मीदवार भी. लेकिन एक फ़िक्र भी, कि कहीं आपसी विवाद के चलते क्रोस-वोटिंग न हो जाए. सभापति का चुनाव शुरू हुआ और क्रोस-वोटिंग हुई. लिहाज़ा अब भाजपा और कोंग्रेस के पास बराबर 15-15 मत थे. इस स्थिति के पैदा होने से भाजपा से सभापति पद के दावेदार कमलेश डोशी का भाग्य चमक उठा. इस दरमियान नगर परिषद कार्यालय के बाहर जम कर दोनों पार्टी के कार्यकर्ता जश्न मना रहे थे. पूरा माहौल जश्न में डूबा था. एक तरफ कोंग्रेस वाले, तो एक तरफ भाजपा वाले झूम रहे थे. दोनों पार्टी को उम्मीद थी, कि सभापति उन्ही का बनेगा. लेकिन अचानक नतीजा आया... नतीजा यह कि लोटरी में भाजपा के कमलेश डोशी जीत हांसिल कर चुके थे, और इस तरह फिर उन्हें सभापति की गद्दी हांसिल हो गई... भावुक मन से सभापति नगर परिषद के बाहर आए. और सभी को धन्यवाद दिया. इसके बाद तो मानों पूरा माहौल ही बदल गया. कोंग्रेस कार्यकर्त्ता लौटने लगे, तो वहीँ भाजपा कार्यकर्त्ता झूमते नहीं थके. नगरपरिषद के बाहर और शहरभर में कमलेश डोशी के नाम पर जश्न मनाया जाने लगा, और इस तरह एक नया इतिहास प्रतापगढ़ के पन्नों में दर्ज हो गया. इस चुनाव ने एक बात साफ़ कर दी- जनता का मत लेना आसान नहीं है, अब जनता शराब-पैसे से नहीं बिकती...! अब लोग अपना फैसला सोच-समझ कर लेना सीख गए हैं. इस चुनाव ने एक तरफ भाजपा के लिए फिर नए आयाम खोल दिए हैं, तो वहीँ कोंग्रेस को सीख दी है. पर्याप्त सीटें होने के बावजूद कोंग्रेस अपना सभापति नहीं बना पाई. और इस बात से अब कोंग्रेस का हर कार्यकर्त्ता ठगा हुआ महसूस कर रहा है. कोंग्रेसी अब इस खोज-बीन में लगे हुए हैं, कि आखिर वह कौन दगाबाज पार्षद था, जिसने भाजपा के समर्थन में मत दिया.
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