प्रतापगढ़ में आपसी फूट कोंग्रेस को ले डूबी! कमलेश डोशी एक बार फिर प्रतापगढ़ में सभापति बने. क्रोस वोटिंग का संदेह होने पर कोंग्रेस से सुरेन्द्र बोरदिया को सचिन पायलट के निर्देश पर निष्काषित कर दिया गया. जबकि उनका दावा है कि उन्होंने क्रोस वोटिंग नहीं की. ऐसे में पार्टी अब अजीबो-गरीब स्थिति में है. अगर बोरदिया ने क्रोस वोटिंग नहीं की, तो आखिर की किसने? आखिर वह बैमान कौन है, जिसने भाजपा को मत दिया, और सारा सियासी तख्ता पलट कर रख दिया. प्रतापगढ़ कोंग्रेस पर सवाल खड़े हो रहे हैं. पूर्ण बहुमत के बावजूद कोंग्रेस सभापति नहीं बना पाई. आलाकमान की ओर से प्रतापगढ़ कोंग्रेस कमिटी पर दबाव बढ़ रहा है. पांच साल से कोंग्रेस जमीन तलाशने में लगी थी, लेकिन एक बागी ने सब कुछ पलट कर रख दिया. यह चुनाव प्रतापगढ़ के इतिहास में कोंग्रेस के लिए, सबसे घटिया चुनाव साबित हुआ. पार्टी से निष्काषित हुए सुरेन्द्र बोरदिया पार्टी के निर्णय पर सवाल खड़े कर रहे हैं.
सुरेन्द्र बोरदिया, पूर्व पालिका अध्यक्ष : आरोप जो मेरे ऊपर लगे हैं, वो गलत हैं. अगर मैं पार्टी विरोधी गतिविधी में होता तो पांचवी बार पार्षद नहीं बनता. पार्टी चाहे वैसे जांच करा ले, क्योंकि सांच को आंच नहीं है.
पार्टी में बागियों को तलाशने की गहमा-गहमी तेज हो चुकी है. पार्टी से निष्काषित हुए बोरदिया उन्हें निष्काषित न कर, असली बागी तलाशने की बात कह रहे हैं. आपको बतादें कि कोंग्रेस पार्टी के पास पूर्ण बहुतमत था. कोंग्रेस के पास 16 तो भाजपा के पास 14 सीटें थी. बावजूद इसके कोंग्रेस अपना सभापति नहीं बना पाई. जानकारी के मुताबिक़ कोंग्रेस के दो पार्षदों ने और भाजपा के एक पार्षद से क्रोस वोटिंग की. जिस वजह से आंकड़ा 15-15 का हो गया. और लोटरी से भाजपा के कमलेश डोशी की जीत हुई. कोंग्रेस पार्टी पर यह भी आरोप लग रहे हैं, कि उन्होंने बिना पार्षदों से चर्चा किए ही सारे फैसले ले लिए. और यह हार उसी का परिणाम है.
सुरेन्द्र बोरदिया, पूर्व पालिका अध्यक्ष : मुझे पुछा नहीं गया. कोई राय नहीं ली गई. मालवीय जी से निवेदन किया था, कि पार्षदों से डिस्कस करें. ताकि योग्य व्यक्ति सभापति बने. लेकिन उस बात को उड़ा दिया गया. और मनमाने तरीके से तीन-चार लोगों ने किसी को भी चुन लिया. लेकिन जनता इस बात के लिए कोंग्रेस नेतृत्व पर सवाल उठा रही है. जनता के बोल आप खुद भी जान रहे होंगे.
इस चुनाव में कोंग्रेस पार्टी की अजीबो-गरीब स्थिति थी. कोंग्रेस सुरेन्द्र चंडालिया को सभापति का चेहरा बना कर चुनाव लड़ रही थी. सभापति पद के दूसरे दावेदार इस बात से खफा थे. इन लोगों ने चंडालिया को हरवाने में पूरी ताकत फूंक दी. लिहाज़ा चंडालिया खुद अपने वार्ड से नहीं जीत पाए. इसके अलावा कुछ और प्रमुख दिग्गज जैसे- रवि ओझा, सुनील मेहता, लाता शर्मा भी अपने वार्ड से हार चुके थे. अब बचे थे तो सिर्फ सुरेन्द्र बोरदिया, जो पहले भी चेयरमेन रह चुके हैं. लेकिन सारे पार्षद चंडालिया के थे, इसलिए बोरदिया को समर्थन देने को राज़ी नहीं थे. बोरदिया चेयरमेन ना बने, इसलिए सभी पार्षदों की रातों-रात खरीद-फरोख्त हुई. पार्षदों की लाखों में बोलियां लगी. और कुछ बिक भी गए. पार्टी आलाकमान इस ओर कुछ भी बोलने से कतरा रही है. पार्टी उन दो बागियों को ढूंढ चुकी है, जिन्होंने क्रोस वोटिंग की. खबर यह भी है कि इन पार्षदों की 55 लाख रूपए में खरीद-फरोख्त हुई थी. पार्टी ने पूर्व मंत्री महेंद्र जीत सिंह मालवीय को जिले का चुनाव प्रभारी बना कर भेजा. अब उन पर भी पार्टी की ओर से दबाव बनता जा रहा है. फिलहाल पार्टी कुछ भी बोलने से बच रही है. प्रतापगढ़ में अपनी साख गवां चुकी कोंग्रेस पार्टी के पास कार्यकर्ताओं समेत जनता को देने के लिए कोई जवाब नहीं है. क्योंकि बहुमत कोंग्रेस का था, और सभापति भाजपा के बन गए!!!
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