प्रतापगढ़ में मुआवजे की हकीकत तब खुल गई जब उन लोगों को मुआवजा दे दिया गया जिन्होंने फसलें बोई ही नहीं थी, और उन्हें भी जिनका खराबा हुआ ही नहीं था. और जिनका हुआ, वे वंचित रह गए. मुआवजे के हकदार लोग इससे वंचित रह गए. इन किसानों के चहरे इसलिए मायूस हैं, क्योंकि इन्हें लग रहा है किसी ने इनके साथ छलावा किया है. बेमौसम बारिश और ओलावृष्टि से इनकी फसलें कुदरत की भेंट चढ़ गई. तो सरकार मददगार बन कर सामने आई और मुआवजे का ऐलान लग गया. लेकिन मुआवजा बांटने की बारी आई, तो वह रसूख वालों के हाथ लग गया. ये आरोप है उन किसानों के जिन्हें मुआवजे के नाम पर फूटी कोड़ी तक नहीं मिली.
सोहन लाल अंजना, किसान : रबी की फसल में जो नुकसान हुआ है, वह नुसकान 33% से अधिक हुआ है. रबी में जो नुकसान हुआ है , उसका मुआवजा किसानों को मिलना चाहिए था. लेकिन उसकी गलत गिरदावरी रिपोर्ट पटवारियों ने बनाई. मुआवजा सूचि में कई किसान नहीं जुड़े. जिन किसानों ने फसलें बोई ही नहीं, उन्हें भी मुआवजा मिल गया. जो मुआवजे के हकदार किसान हैं, उन्हें मुआवजा नहीं मिला है.
इधर अन्नदाताओं के सामने नई समस्या खड़ी हो गई है. हाल ही में किसानों ने पहली बारिश के बाद बुवाई की थी. इस उम्मीद के साथ की बारिश होगी, और फसलें खेतों में लहलहाने लगेंगी. लेकिन ऐसा हुआ नहीं! बीस दिनों तक बारिश नहीं हुई. कई फसलें मुरझा गई. जिले में फसलों के साथ सुखा पड़ने लगा. तभी अचानक 10-12 दिनों तक बिना रुके बारिश हुई. जिससे जो फसलें उगी थी, वो भी नष्ट हो गई. फसलें पीली पड़ गई और खेत के खेत नष्ट हो गए. ऐसे कई किसान है जिनकी पूरी की पूरी फसल तबाह हो चुकी है.
सोहन लाल अंजना, किसान : बीस दिन तक बारिश नहीं हुई, तो फसलें नष्ट हुई. फिर लगातार बारिश हुई दस दिन. तो बची फसलें खत्म हो गई. पीली पड़ कर फसलें खत्म हो रही है. खेत खत्म हो रहे हैं. किसानों की कोई सुनने वाला नहीं है. सत्ता पक्ष ध्यान नहीं दे रहा, और ना ही अधिकारी. किसानों के साथ छलावा हो रहा है. हम यही मांग करते हैं कि पुन: इसकी गिरदावरी की जाए.
ना मौसम, ना सत्ता पक्ष और ना ही प्रशासनिक अधिकारी किसानों का साथ दे रहे हैं. किसानों ऐसे में मायूस महसूस कर रहे हैं. अगर वाकई मुआवजे में गडबडघोटाला हुआ है तो उसकी ज़िम्मेदारी किसकी है? अगर किसानों के आरोप सही हैं, तो कहाँ गए मुआवजे के नाम पर बाटे गए करोड़ों रूपए?
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