जनजाति विकास मंत्री नंदलाल मीणा ने डिपो बस स्टेंड के उद्घाटन पर बतौर मुख्य अतिथि शिरकत की. लोग भी खुश थे! इस बात से कि उन्हें उनका डिपो बस स्टेंड मिल गया है. लेकिन हैरानी तब हुई, जब महज़ 26 दिनों बाद यह डिपो बस स्टेंड पूरी तरह बंद हो गया. 5 जुलाई के दिन डिपो का शुभारंभ हुआ था. लेकिन आज यहाँ सन्नाटा पसरा है. यहाँ एक भी कर्मचारी नहीं है. टिकट विंडो खाली पड़ी है, अंदर गन्दगी पसरी है. दूर-दूर तक कोई नजर नहीं आ रहा. इस पूरे भवन में एक भी इंसान नहीं है. यह लाखों रूपए खर्च कर बनाया गया वो भवन है, जहाँ अब सिर्फ कबुतर नजर आ रहे हैं! आज शहरवासी इस डिपो की बदहाली पर सवाल खड़े कर रहे हैं. "डिपो बस स्टेंड दूर बना दिया गया. लिहाज़ा वहाँ कोई जा नहीं सकता." यह कहना है उन शहरवासियों का जिन्हें इस डिपो बस स्टेंड से कई उम्मीदें थी. शहरवासियों की अब यही मांग है कि उस बस स्टेंड तक जाने के लिए कोई व्यवस्था नगर प्रशासन की ओर से की जाए. कोई सरकारी रिक्शा या बस लगाईं जाए तो लोगों को वहाँ पहुंचा सके. क्योंकि बिना संसाधनों के वहाँ तक पहुंचना लोगों के बस का रोग नहीं है. फिलहाल बस स्टेंड का भवन खाली पडा है. और पूर्ण रूप से बंद है!
डी. डी. सिंह राणावत, स्थानीय : उद्घाटन करके प्रशासन ने इतिश्री कर ली. अब यहाँ सिर्फ सन्नाटा पसरा रहता है.
लाला धोबी, स्थानीय : यह डिपो बना दिया, इतना दूर बनाया है. वहाँ जाने तक की कोई व्यवस्था नहीं है. रिक्शा में जाएँ तो पचास रूपए लगते हैं. अगर कोई ग्रामीण शहर में 100 रूपए कमाता है और 50 रूपए रिक्शा के देता है. तो वह कैसे काम चलाएगा.
मदन शर्मा, स्थानीय : यह डिपो बस स्टेंड इतना दूर बना दिया कि वहाँ कोई नहीं जाता. जब इस शहर वाले बस स्टेंड पर ही शाम के बाद सन्नाटा हो जाता है तो उस बस स्टेंड पर कौन जाएगा. उसकी जगह ही उसकी बदहाली का कारण है.
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