यह टूटी-फूटी, जर्जर और सड़ी-गली इमारत आप देख रहे हैं, यह प्रतापगढ़ के जिला मुख्यालय में विभागों में से एक है. ऐसे भवनों में प्रतापगढ़ के कई विभाग आज भी संचालित हो रहे हैं. एक तरफ सरकार कोशिश में हैं, कि विभागों की दशा सुधारी जाए, नए भवन बने, रंग-रोगन हो और साथ ही नए उपकरण और तकनीक से उन्हें डीजीटलाईज़ किया जाए. लेकिन जमीनी स्तर की हकीकत सारी योजनाओं की पोल खोलती है. मसलन- देखिए इस भवन को, क्या हाल है इसका. यह जलदाय खंड प्रतापगढ़ का भवन है. जिसका निर्माण करीब बीस सालों पहले हुआ था. इस पर आखरी बार रंग-रोगन 13 सालों पहले किया गया था. विभाग को बजट भी मिला, फिर भी पता नहीं , क्यों यहाँ कभी ना तो मरम्मत कराई गई और ना ही रंग-रोगन. अंदर से, बाहर से, हर तरफ से यह भवन खंडहर की तरह नजर आ रहा है.
इसके अलावा भी जिले में कई भवन हैं ,जो इसी तरह बदहाली की भेंट चढे हुए हैं. इन विभागों में इंटरनेट नहीं है, पंखे पुराने हो गए हैं, कंप्यूटर नही हैं, और ऐसी कोई चीज़ नहीं है, जो डिजिटल इंडिया को सिम्बलाइज करती हो. इस तरह के विभाग आज भी वैसे ही हैं, जैसे बीस सालों पहले थे. अतिरिक्त जिला कलेक्टर से बात की, तो उन्होने कहा कि इस तरह के निर्माण कार्य बजट की उल्बब्धता पर ही निर्भर करते हैं.
ANURAG BHARGAV, ADM : मजबूरी यह होती है कि बजट नहीं मिलता. या एस्टीमेट नहीं बनते. लागत बढ़ जाति है. ऐसी कई समस्या होती है. बाकी कोशिश यही रहती है कि भवन को अच्छे से रखा जाए. और कोई टूट-फूट है तो मेन्टेन होती रहे. लेकिन यह सिस्टम है, कि विभाग जिनके पास खुद का बजट है, जो खुद कर सकते हैं. बाकी जो अलग हैं, जो PWD के भरोसे रहते हैं. उनके बजट की उपलब्धता पर ही सब होता है. उसके बाद ही सब कुछ तय होता है.
ना-जाने क्यों लेकिन इन दिनों जिले के अधिकतर विभागों में बजट का टोटा है. जहाँ भी जाओ सब बजट का ही रोना रोते हैं. हो सकता है इसी वजह से इस तरह के हाल हो! लेकिन सवाल यह कि गुज़रे इतने सालों में क्या बजट मिला ही नहीं? खैर ऐसा तो कम संभव लगता है. अभी के हालत देख कर साफ़ झलकता है, कि ना तो सरकारी की और ना ही अधिकारीयों की मंशा है कि इन भवनों का सुधार करें. ये तो आज भी राज़ी हैं- उन भवनों में काम करने को, जहाँ पानी रिसता हो, सीलन से बदबू आती हो, और जो कभी गिर भी सकते हों.
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