Friday, October 23, 2015

प्रतापगढ़ में चमगादड़ों का खात्मा! अपने ही मित्र को मार रहा मनुष्य. पर्यावरण के लिए बेहद उपयोगी है चमगादड़. आखिर क्यों डरते हैं लोग? चमगादड़ पर खास रिपोर्ट.





आज मनुष्य इतना स्वार्थी हो गया है कि जो जीव उसका मित्र होता है, जो उसका हितैषी होता है, उसी की जान ले लेता है... कभी मांस के लिए, कभी खाल के लिए मनुष्य ने कई जीव-जंतुओं का पृथ्वी से नामोनिशान मिटा दिया है... मनुष्य के इस वहशीपन का शिकार मासूम चमगादड़ भी हो रहे हैं, जिसने सदियों से जंगलों को बढाने में सबसे बड़ी भूमिका निभाई है...

राजस्थान के प्रतापगढ़ और आसपास के जिलों में मनुष्य चमगादड़ों का सबसे बड़ा दुश्मन बना हुआ है...हालत यह है कि किसी गाँव में बस्ती के निकट किसी पेड़ पर चमगादड़ अपनी बस्ती बसा लेता है, तो उसकी शामत आ जाती है... लोगों में अंधविश्वास है कि ये चमगादड़ प्रेत होते हैं. इंसानों का खून चूसते हैं...पेड़ों पर उलटे लटके ये चमगादड़ अपशकुनी और गंदे जीव हैं, इसकी बोली कर्कश और डरावनी है... गाँव के निकट इनका रहना ठीक नहीं... ये जहां भी जाते हैं, वहां उजाड़ कर देते हैं... इसी अंधविश्वास के कारण लोग पत्थर से, गिलोल से या गोफण से चमगादड़ों को मार भगाते हैं और गाँव के आसपास उनकी बस्तियां बसने नहीं देते...

चमगादड़ों के खून चूसने वाली अफवाहों को तूल मिलता है "ड्रेकुला" जैसे किरदारों से. हमारे देश में गोआ और लाटिन अमरीका में पाई जानी वाली वेम्पायर जाति का चमगादड़ ही केवल खून पीता है, वह भी इंसानों का नहीं बल्कि मवेशियों और पक्षियों का... प्रतापगढ़ जिले में साल-दर साल चमगादड़ों की संख्या कम होती जा रही है... अब ग्राम-बस्तियों के बाहर चमगादड़ों के बड़े झुण्ड नजर नहीं आते...अब इनकी बस्तियां बहुत कम नजर आती है. चमगादड़ की कम होती संख्या चिंता का विषय इसलिए हैं क्योंकि यह पर्यावरण के लिए बेहद उपयोगी हैं.

यह चमगादड़ जंगल उगाने में अहम भूमिका निभाता है. यह चमगादड़ जब फल खाते हैं तो उड़ते हुए उनके बीजों को जमीन पर गिरा देते हैं, यही नहीं, इनके मल से भी बीज गिरते हैं, जिससे नए पेड-पौधे विकसित होते हैं. कई चमगादड़ कीट-पतंग खाते हैं, जो भी हमारे फायदे की बात है. कीड़े खाने वाले चमगादड़ों की खासियत यह है की यह रात के समय हर घंटे लगभग 600-1000 कीड़ों को खा सकते हैं. खासकर ऐसे कीड़े जो हमारे जंगल-फसलों को नुकसान पहुंचाते हैं..ये चमगादड़ हानिकारक कीड़ों को मारने का काम मुफ्त में करते हैं... जिसके लिए आज कई पेस्टीसाईड कंपनियां भारी कीमत वसूलती हैं.

फल खाने वाले चमगादड़ तो प्रकृति के लिए एक बड़ा वरदान है...यह फूलों के पराग या फलों का सेवन करते हैं और पराग को एक फूल से दूसरे फूल तक पहुंचाते हैं और परागण में मदद करते हैं. लोंगों का मानना है कि ये चमगादड़ ढेरों फल खाकर फलों के बगीचों को नुकसान पहुंचाते हैं, इसलिए इन्हें मार भगाते हैं, जबकि चमगादड़ केवल ऐसे फल खाते हैं जो पकने में अक्षम होते हैं. चमगादड़ जब इन फलों का सेवन करते हैं तो इनके बीजों को अपनी चोंच में एक जगह से दूसरी जगह ले जाते हैं या फिर इन्हें अपनी मल में निकालते हैं, जो कि इन बीजों को जंगल में गिरने के बाद तेज़ी से अंकुरित करने में मदद करती है. साथ ही साथ बीजों को इधर उधर कोसों दूर फैंककर यह चमगादड़ पुराने मृत जंगल में भी पेड़ों की नई पैदाइश में मददगार होते हैं.

तो देखा आपने, यह चमगादड़ कितने उपयोगी है... खतरनाक दिखने वाले यह चमगादड़ असल में बहुत भोले होते हैं. और तो और इंसानों से तो इन्हें कोई लेना-देना नहीं होता. उल्टा यह हमारे ही काम आते हैं.

DEVENDRA MISTRI, WILDLIFE EXPERT : चमगादड़ पर्यावरण के लिए बहुत उपयोगी है. यह जामुन अंजीर खाता है. पीपल बरगत के फैलाव में बहुत अहम भूमिका रखता है. फल खाता है, उसके लिए मीलों चलता है. खाते हुए बीज बिखेरता है. जंगल उगाने में एजेंट है. यह अभी काफी कम हो रहे हैं. यह ग्रुप में रहते हैं. इनके पसंदीदा पेड और स्थल होते हैं. कई जातियां कीट और पतंग खाती हैं.  हम लोग हर चीज़ से इतने दर गए हैं, कि किसी को भी हानिकार्न जीव घोषित कर देते हैं. जिनका परिणाम जीवों को भुगतना पड़ता है. इन जीवों के उपयोग को हम नहीं समझ पाए हैं. यह छोटा-मोटा नुकसान करते हैं. लेकिन जंगलों को उगाने वाले यही जीव हैं. यह आहार श्रंखला से लेकर बीज वितरण तक यह काम का जानवर है... हम इसे अपने मतलब के लिए हानिकार्न जीव् मान रहे हैं. हम निर्दयी हो गए हैं इसलिए हमें सभी हानिकारक नजर आ रहे हैं.

गत सालों में शिकार के चलते इसकी संख्या में भारी कमी आई है. दुखद पहलु यह है कि इस चमगादड़ के शिकार पर कोई सजा नहीं है. चमगादड़ों को वन्य जीव अधिनियम 1972 के शेड्यूल 5 में चूहे के साथ रखा है. जिसका मतलब है कि इन्हें उस वर्ग में रखा गया है, जिसमें वे जीव जंतु, कीड़े-मकौड़े हैं, जो अनाज को नुक्सान पहुंचाते हैं और जिन्हें मारने पर कानूनी सज़ा का प्रावधान भी नहीं है. लिहाज़ा इसका शिकार भी सरेआम होता है... खुद वन अधिकारी भी इसे बड़ी श्रेणियों में शिफ्ट करने की इच्छा जता रहे हैं-

MUKESH SAINI, DFO (IFS OFFICER) : वन जीव् सुरक्षा अधिनियम 1972 बना था, तब इन्हें SCHEDULE 5 में रखा है, चूहे के साथ. लेकिन अब इनकी संक्या कम हो रही है. इसलिए ऐसा नहीं हो सकता कि हम इसे खत्म होने दे. जिस तरह ब्लेक बग को और अन्य प्राणियों को आगे अन्य श्रेणियों में रखा है, उसी तरह इसका भी ग्रेड बढ़ाया जाना चाहिए.

चमगादड़ पर इस तरह की ज्यादती से प्रतापगढ़ का वन विभाग भी कम चिंतित नहीं है... पर्यावरणविदों के साथ वन अधिकारी ग्रामवासियों को यह समझाने का प्रयास करते हैं कि चमगादड़ से मानव जीवन को कोई ख़तरा नहीं है..चमगादड़ों को मारकर हम अपने ही वर्तमान और भविष्य को चौपट कर रहे हैं. चमगादड़ प्रजातियों को लुप्त होने से बचाना है, तो इसे भारतीय वन्य जीव अधिनयम के सुरक्षित दर्जों में कम से कम शिड्यूल-3 में शामिल करने की जरूरत है, ताकि इसे मारने वालों को कानूनी तौर पर सजा मिल सके... नहीं तो वह दिन दूर नहीं जब प्रकृति के लिए बहुउपयोगी यह चमगादड़ लुप्त हो जाएंगे...!

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