धर्म जन्म से बंधा हुआ नहीं है... जो व्यक्ति तत्व को समझ कर जिन मार्ग को अपना लेता है वही तो जैन है! जैन धर्म के जितने भी तीर्थंकर हुए सभी क्षत्रीय वंश के थे और उनके जो प्रमुख शिष्य हुए वे सभी ब्रहामण थे. धर्म तो कर्म के साथ जुडा है ये विचार दिगम्बर जैन आचार्य सुनील सागर जी महाराज ने अपने प्रवचनों में व्यक्त किए.
पर्युषण पर्व में बत्तीस उपवास करने वाले तपस्वियों की अनुमोदना के लिए आयोजित धर्म सभा में बोलते हुए आचार्य श्री ने कहा - भोगो की अभिलाषा करना मूर्खता है भोगते भोगते आदमी का पूरा जीवन गुजर गुजर जाता है लेकिन उसे शांति नहीं मिलती है. शान्ति तो त्याग करने से ही मिलती है जिनवानी कहती है जीवन में जितना त्याग करोगे जितना छोडने का प्रयास करोगे वो ही पुरुषार्थ है बाकी तो सब माया है. ये काया की कश्ती कब डूब जायेगी किसी को नहीं पता. माया का मोह और काया का श्रृंगार जिसने छोड़ दिया उसका जीवन सफल है. जैन धर्म इन्द्रियों व कषायों को जीत कर श्रेष्ठ चारित्र पालन करने की बात कहता है और जो इन बातो का पालन करते है वे जिनेन्द्र हो जाते है. आगे आचार्य श्री ने अपने उद्बोधन में सन्मति समवशरण में बड़ी संख्या में उपस्थित श्रावको को सम्बोधोत करते हुए कहा की दुनिया में कोई भी सेठ हो अपने मुनीम को सेठ नहीं बनाएगा. कोई कंपनी का मेनेजर अपने यहाँ काम करने क्लर्क को अपनी जगह नहीं बिठाएगा.
कोई भी बड़ा नेता हो अपनी कुर्सी अपने कार्यकर्ता के लिए खाली नहीं करता है लेकिन तीन लोको के स्वामी भगवान महावीर कहते है - सब हमारे जैसे बनो और उनके लिए हम स्थान छोडने के लिए तैयार है जरुरत है सिर्फ उनके समान पुरुषार्थ करने की मोह की नींद से उठकर जो उध्यम करता है और आत्म्द्रिश्ती रखता है वह निश्चीत रूप से बंधन मुक्त हो जाता है मानव जीवन बहुत मुश्किल से मिलता है और उसमे जैन धर्म तो बहुत ही कठीण है ऐसे जैन धर्म में जन्म लेने के बाद भी पुरुषार्थ नहीं किया तो यह जीवन पशुओं के समान है इसलिए धर्म से नहीं कर्म से जैन बनना है .
बत्तीस उपवास करने वाले तपस्वियों का निकला वरघोडा:- आचार्य सुनील सागरजी महाराज की निश्रा में दिगम्बर जैन समाज के पर्युषण पर्व में बत्तीस उपवास करने वाली दो तपस्वियों का विशाल वरघोडा निकाला गया. वरघोडे में हजारों की संख्या की शामिल महिलाएं और पुरुष भक्ति गीतों पर नृत्य करते हुए चल रहे थे . पर्युषण पर्व की आराधना के तहत दो महिला तपस्वियों रमिला जैन और पुष्पा जैन ने बत्तीस दिनों तक निराहार रह कर आराधना की तप के इन दिनों में इन्होने बिना कुछ खाए केवल पानी लिया वो भी दिन में केवल एक बार. इन तपस्वियों की अनुमोदना के लिए नया मंदिर से बेंड बाजो और ढोल नगाडो के साथ विशाल चल समारोह निकाला गया. मार्ग में जगह जगह तपस्वियों का माला और श्रीफल भेंट कर स्वागत किया गया. समारोह में बड़ी संख्या में राजनैतिक दलों और सामजिक संस्थाओं के पदाधिकारियों के साथ विभिन्न समाजो के लोग शामिल हुए .चल समारोह वापस नया मंदिर पर आकर समाप्त हुआ जहाँ पर तपस्वी परिवारों की ओर से प्रभावना का वितरण किया गया .
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