प्रतापगढ़ जिला प्रशासन किसी भी अनहोनी से निपटने के लिए कितना तैयार है, इस बात की पोल तब खुली जब ज़ी मीडिया पड़ताल करने पहुंचे. प्रशासन के पास घटना-दुर्घटना से निपटने के लिए न के बराबर सामान हैं, और जो हैं- उन्हें आज तक छुआ तक नहीं गया.. विभाग के कागजों में लिखा है कि उनके पास करीबन 90 सामान तैयार स्टोर में पड़े हैं. इसमें उन के पास 2 हेंड टूल सेट, 5 लाइफ जेकेट, 1 एक्सटेंशन लेडर, 5 इमरजेंसी लाईट, 5 मेगा फोन, 5 फेस मास्क समेत कई सामन हैं. साथ ही स्काउट के पास तो 3-4 नावें हैं! लेकिन जब हमने कभी ना खुलने वाले आपदा स्टोर रूम को खुलवाया, तो महज सात सामान ही उपलब्ध मिले. ऐसे में सवाल यह खडा होता है कि कहाँ गए बाकी के सामान?... दूसरी बात- जो उपकरण फिलहाल मौजूद हैं, उन्हें कभी खोला ही नहीं गया.
जिले में हाल ही में कई ऐसी घटनाएँ हुई हैं, जहाँ इन सामानों की ज़रूरत थी, जिन्हें फिर बाहर से महंगे दामों पर किराए पर मंगाना पड़ा. ऐसे में सवाल ये भी कि सामान उपलब्ध होने के बावजूद क्यों उसका उपयोग नहीं होता..
पहली बड़ी घटना- भंवर सेमला बाँध में एक व्यक्ति की डूब कर मौत हो गई. करीबन एक दिन तक युवक की लाश पानी में डूबी रही. क्योंकि गोताखोर नहीं थे, और नावें नहीं थी. आपदा प्रबंधन से पूछा गया तो उन्होंने भी हाथ खड़े कर दिए. ऐसे में उदयपुर से गोताखोर और नावें मंगाई गई.
दूसरी घटना- सुहागपुरा के तालाब में दो बच्चियां तालाब में डूब गई. दोनों की मौत हुई. एक को बाहर निकल लिया गया और दूसरी बहन का शव एक दिन बाद निकल पाया. क्योंकि पानी में जाने के लिए उपलब्ध सामान नहीं मिले... जबकि हम जब स्टोर रूम पहुंचे, तो पानी के अंदर सांस लेने वाला, और अन्य सभी सामान उपलब्ध थे, जिनके सहारे पानी में जाया जा सकता था..
ऐसी कई घटनाएँ हैं, जहाँ आपदा के लिए उपलब्ध साधनों का उपयोग हुआ ही नहीं. जिले में इन दो महीनों में तालाब में डूब कर कम से कम 50 मौतें हो चुकी हैं. जो मजाक की बात तो बिलकुल नहीं है. अगर सूची के अनुसार ये सामान विभाग के पास हैं... तो आखिर हैं कहाँ..! इसका जवाब तो खुद अधिकारीयों के पास भी नहीं हैं. क्योंकि ये सामन शायद कभी ख़रीदे नहीं गए, पर हाँ इनके बिल जरुर उठ गए... संभागीय आयुक्त से इस मामले में बात की गई, उन्होंने भी स्वीकार किया कि आपदा से जुडी सारी सुविधाएँ जिला स्तर पर होनी चाहिए, गोताखोर भी!
भवानी सिंह देता, संभागीय आयुक्त : इसमें हम लोगों ने पहले सेक्रेटी लेवल पर बात की थी. crf में equipment का पैसा होता है. कलेक्टर को कहेंगे कि requirement भेजें..
इसके बाद हमारे केमरे के सामने तो आयुक्त ने अधिकारीयों को कार्रवाई के निर्देश दे दिए. लेकिन अब ज़रूरत है जांच की... कि आखिर वो उपकरण यहाँ हैं क्यों नहीं, जिनके होने का विभाग दावा कर रहा था... आपदा प्रबंधन का मतलब यह नहीं कि इन सामानों तो तभी खोला जाए तब जिले में बड़ी आपदा आए... ये सामान किसी भी छोटी-बड़ी घटनाओं में मदद के लिए होते हैं... पर शायद अधिकारी इस बात को भूल बैठे हैं. प्रवेश परदेशी, ज़ी मीडिया, प्रतापगढ़
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