Saturday, October 17, 2015

सर पीटने को मजबूर अफीम काश्तार. कई काश्तकारों के पट्टे कटे. नई अफीम नीति का भी विरोध कर रहे हैं किसान. कहा- दूसरे देशों को फायदा पहुँचाना चाहती है सरकार.




प्रतापगढ़ में सरकारी की नई अफीम नीति का विरोध शुरू हो गया है. किसानों का कहना है कि सरकार ने अफीम नीति में संशोधन कर किसानों का हक छिना है, तो वहीँ सरकार ऐसा कर दूसरे देशों को फायदा पहुँचाना चाहती है. किसानों का मानना है कि इस नीति की वजह से कई किसान बरबाद हो जाएंगे.

इन किसानों के चेहरे इसलिए मुरझाए हुए हैं, क्योंकि इन्हें लगता है कि इनका हक सरकार ने छीन लिया है. सरकारी की नई अफीम नीति के विरोध में अब किसान उतर आए हैं. किसानों का आरोप है कि सरकार इस नीति से विदेशों को फायदा पहुँचाना चाहती है. किसानों का कहना है कि सरकार 56 लाख रूपए प्रति किलो की दर से विदेशों से कोटिन ला रही है. और भारत के किसानों को 1500 रूपए किलो भी नहीं दे रही. इनका यह भी कहना है कि सरकारी विदेशों से महँगी दवाई ले रही है, जबकि हमारे देश में किसान सस्ते में ही अफीम उत्पादन कर रहे हैं. इस साल अफीम काष्टकारों के पट्टे काट दिए गए, इस बात से भी किसान झल्लाए हुए हैं. इस बार मौसम की मार से जिले में अफीम की फसल बरबाद हुई थी, जिसके बाद किसान औसत पूरा नहीं कर पाए थे. जिस वजह से उनके पट्टे काट दिए गए. अब मौसम की मार पर भला किसान की करते! प्राकृतिक रूप से फसलें बरबाद हुई और किया-करा किसानों को भुगतना पड़ा. किसानों का मानना है कि सरकार उनको प्रोत्साहन देने के बजाय विश्वासघात कर रही है. अगर सरकार उनका साथ दे तो वे विदेशों से कई गुना कम दर में अफीम दे सकते हैं.

रामलाल जाट, जिलाध्यक्ष, किसान विकास समिति : भारत सरकार की नई अफीम नीति का विरोध करते हैं. हमारा आंदोलन कब से चल रहा है. कटे हुए लाइसेंस मांग रहे हैं तो वो नहीं दे रही. सरकारी विदेश से कोटिन आयत कर रही है. ऑस्ट्रेलिया से कर रही है. विदेशों से महँगी दवाई ले रही है. किसानों का ही नुकसान है. सरकार 56 लाख रूपए प्रति किलो की दर से विदेशों से कोटिन ला रही है. और भारत के किसानों को 1500 रूपए किलो भी नहीं दे रहे. इस साल 1400 लाइसेंस रद्द कर दिए. हम आगे भी जाएंगे. जयंत सिन्हा ने भी आश्वासन दिया था, कि 40000 नए पत्ते देंगे और नीमच आएँगे..लेकिन नहीं आए. ऐसे में अब 2000 किसान अब हम दिल्ली जाएंगे.


वर्ष 2015-16 के लिए अफीम नीति घोषित होने के बाद जिले में 339 कृषकों के लाइसेंस काट दिए गए हैं. काला सोना यानि अफीम के उत्पादन के लिए कांठल में इस वर्ष 5,545 कृषकों ककी ही पात्र माना गया है. इन किसानों को अभी तक अफीम बुवाई के लाइसेंस दिए जा रहे हैं. जबकि गत वर्ष नारकोटिक्स की ओर से जिले में 5,884 कृषकों को अफीम बुवाई के लिए लाइसेंस जारी किये गए थे. विभाग की ओर से प्रति हेक्टेयर औसत उत्पादन 56 किलो प्रति निर्धारित किया गया था. जिले में 216 गांवों के किसानों को ही अफीम बुवाई के लाइसेंस दिए जाएंगे. इसमें छोटी सादडी के 74, प्रतापगढ़ के 107, अरनोद के 35 गाँव शामिल हैं.


बहरहाल सरकार की अफीम नीति को लेकर किसान विरोध में है. किसान चाहते हैं कि इस नीति में फिर संशोधन हो. संशोधन न होने की सूरत में किसान बड़े आंदोलन की तयारी कर रहे हैं. बात सिर्फ एक-दो गाँव के किसानों की नहीं है, प्रतापगढ़ जिले का लगभग हर एक अफीम काश्तकार इस नीति के विरोध में है. इस अफीम नीति से ज्यादा फायदा उन देशों को पहुँच रहा है जहाँ से सरकार अफीम आयत कर रही है, जबकि किसानों को नुकसान हो रहा है. लेकिन सवाल यह भी है, कि जब देश का अन्नदाता कम दाम में अफीम देने को तैयार है, तो क्यों सरकार विदेशों से अफीम खरीद रही है...?

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