प्रतापगढ़ कृषि उपज मंडी संभाग की सबसे बड़ी मंडी होने के साथ-साथ "अ" श्रेणी की मंडी है. प्रतापगढ़ जिले में सोयाबीन की बम्पर पैदावार होती है, इसलिए यहाँ इस महीने मैला-सा लगा रहता है. लेकिन इस बार स्थिति अलग है! फसल बरबादी के बाद अब मंडी में सोयाबीन की आवक बहुत कम रह गई हैं. मंडी में जहां हर साल सोयाबीन की 8500 बोरी प्रतिदिन आती थी, वहीँ इस साल 3500 बोरी प्रतिदिन ही आ रही है, जो कि आधे से भी कम है. पहले एक बीघा पर करीब 3 से 3.50 क्विंटल सोयाबीन की पैदावार होती थी, जो अब 1 बिघा पर 1 से 1.50 क्विंटल की रह गई है... और जो सोयाबीन आ रही है, उनमे से अधिकतर गुणवत्ता वाली नहीं है. क्योंकि फसल खराबे में जो फसलें बचती है, जो सामान्य रूप से कम ही गुणवत्ता वाली होती हैं. लेकिन आवक कम होने से भाव ज्यादा हो गए हैं. सोयाबीन सिमित है, और व्यापारी लेने पर आमादा! ऐसे में किसान यह सोयाबीन 3800 से 4100 रूपए के भाव तक बेच रहे हैं, जबकि हर साल यह भाव 3300 रूपए तक ही होते थे.. ज्यादा भाव मिलने के बावजूद किसानों की भरपाई नहीं हो रही है.
संतोष मोदी, मंडी सचिव : पिछले साल की तुलना में सोयाबीन आवक में बहुत कम आई है. अभी तक 8500 तक बोरी आती थी, जो अब 3500 ही आ रही है. दलहन में भी बैठक कमजोर हो रही है. भाव ज्यादा है. सोयाबीन का जहाँ तक सवाल है, तो 3800-4100 तक बिक रही है. अभी तक यह
किसानों के चेहरे मंडी में आकार भी मुरझाए हुए हैं. भाव ज्यादा भले मिल रहे हों, पर नुकसान की भरपाई नहीं हो रही है. ऐसे में किसान सर पिटने को मजबूर हो चले हैं. किसान अब यही चाहते हैं, कि यहाँ बची-कुची सोयाबीन बेच अपने गाँव लौट जाएँ...
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