Saturday, October 3, 2015

बदहाल सड़कें विकास अवरुद्ध. कहाँ है नेता? जिला बनने के बाद भी अधूरा है अच्छी सड़कों का ख्वाब! जिले के विकास में बाधा बनी टूटी सड़कें. खास रिपोर्ट!





सड़क किसी भी इलाके के विकास की बुनियाद होती है. बिना सड़क ट्रांसपोर्ट प्रभावित होता है, जिससे विकास अवरुद्ध होता है. एक सुदृढ़ जनजीवन के लिए भी सड़क कितनी ज़रुरी है, सभी जानते हैं. प्रतापगढ़ को जिला बने सात साल पूरे हो गए हैं. लेकिन यहाँ आकर आज भी गाँव-सा अहसास होता है. क्योंकि इतने सालों बाद भी हालत देख लगता है मानों यहाँ रत्ती भर भी विकास नहीं हुआ...

प्रतापगढ़ जिला प्रदेश के पिछड़े इलाकों में अव्वल है. यह प्रदेश के उन इलाकों में से के है, जहाँ विकास की ज़रूरत सबसे ज्यादा है. सन् 2008 में प्रतापगढ़ को जिला घोषित किया गया. जिला घोषित होने के बाद उम्मीद जगी की कुछ विकास होगा.. लेकिन कुछ नहीं हुआ. आज भी यह इलाका विकास की राह देख रहा है. यहाँ उद्योग-धंधे नहीं है, आवागमन के साधन कम है.. इसके अलावा ट्रांसपोर्ट की हालत बेहद खराब है.. और हो भी क्यों ना, यहाँ सड़कें ही कुछ ऐसी हैं.

प्रतापगढ़ जिले की अधिकाँश सड़के गड्ढों में तब्दील हो चुकी है. हर एक फीट बाद एक गड्ढा मिलता है. बाइक सवार तो सड़कों पर आने से ही कतराने लगे हैं. इन टूटी सड़कों पर कौन भला अपनी लाखों की गाडी तोड़ने आएगा. इन गड्ढों पर वाहन चलाने वाले इतने परेशान हो जाते हैं कि यहाँ लौट कर नहीं आते. प्रतापगढ़ प्रदेश का सीमावर्ती इलाका है.. मध्यप्रदेश की सीमा से लगता इलाका है. प्रतापगढ़ का अधिकतर व्यापार मध्यप्रदेश के मंदसौर और रतलाम से होता है. लेकिन इन दोनों जगहों तक जाने वाली सड़कें भी अब टूट चुकी है... और टूटी भी ऐसे , कि कुछ बचा ही नहीं है. 100 किलोमीटर का सफर तय करने में कम से कम 4 घंटे का वक्त ज़ाया होता है.. ऐसे में जिले भर का व्यापार प्रभावित हो रहा है... रतलाम-मंदसौर के बाद बारी आती है.. बांसवाडा और उदयपुर की... बांसवाडा जाने वाली सड़क का भी यही हाल है. यह सड़क भी गड्ढों में तब्दील हो चुकी है. लिहाज़ा यहाँ भी जाना कोई पसंद नहीं करता. इसके बाद उदयपुर रोड...! यह रोड अहम इसलिए है क्योंकि जिला चिकित्सालय से रेफर होने वाला हर मरीज यहीं से होकर जाता है. लेकिन असली खतरा तो यहीं है. गड्ढों में उछलता हुआ मरीज उदयपुर तक पहुँचता तो है, लेकिन और नई परेशानियों के साथ! प्रतापगढ़-चित्तोडगढ़ मार्ग के अलावा कोई मार्ग ठीक नहीं है...


अब बात करते हैं रूरल की.. गाँव-गाँव की.! जहाँ डेवेलपमेंट बेहद ज़रुरी है.. गाँव में तो मानों सड़कें हैं ही नहीं..लगता है मानों यहाँ कभी सड़क ही नहीं बनाई गई है. प्रतापगढ़ जिले के गाँवों में सड़कें बदहाल है. खास तौर पर गादोला, बोरी, भुवासिया, मोखमपुरा, हथुनिया, रठांजना आदि कई गाँव है जहां हालत सबसे खराब है. यहाँ जो सड़कें बनाई गई थी, वे टूट चुकी है. इनके मरम्मत के प्रयास भी नहीं किए गए. यह हाल जिले भर के गाँवों का है. जिन गांवों में सड़कें बनी, वहाँ टूट चुकी हैं.. और कई गाँव ऐसे हैं, जहाँ आज तक सड़कें नहीं पहुंची है.

डी. डी. राणावत, वरिष्ट नागरिक : प्रतापगढ़ ट्राइबल एरिया होने से सड़कों से कटा हुआ है. इसकी ग्रामीण सड़कें और कनेक्टिंग रोड्स खस्ताहाल हैं. दूसरे जिलों से आवागमन बाधित होता है. साधन कम होते हैं. कोई गाडी चलाना पसंद नहीं करता है. धुल उडती है. तो बीमार भी होती है. यानी कि पूरा शरीर दुखने लगता है. इन पर चल के... सड़क जब तक सही नहीं होगी, तब तक विकास नहीं होगा. सात साल बाद भी यही हाल है. खेद की बात है. अरनोद-रतलाम सड़क भी टूट गई है. लगता है जैसे क्या किया हो. किस तरह से बनी हो. लोगों को बड़ी उम्मीद थी, कि यह बड़ी चलेगी. इसके लिए फंड भी सरकार ने बहुत खर्च किया था. गाडी चलाने में बहुत दिक्कत आती है. बोर्डर एरिया जो है, वहाँ से एरिया तो बहुत ही खराब है... मंदसौर की जो सड़क है, उसकी दुर्दशा है. छोटी गाडियां मुश्किल से चलती हैं. बीमार व्यक्ति है और इलाज के लिए जाता है, तो समस्या होती है. बीमार की तबियत भी ज्यादा खराब हो जाती है..



यह खबर है जिसने पोल खोली है आदिवासी जिलों में विकास के दावों की! साफ है कि यहाँ कभी विकास हुआ ही नहीं. आखिर क्यों सड़कें ऐसी बनाई जाती है जो टूट जाती है... इस बात से सभी वाकिब हैं, कि सडक निर्माण के ठेके बिना रिश्वत के नहीं मिलते. यहाँ से भ्रष्टाचार शुरू होता है, जो कि सड़क निर्माण में घटिया सामग्री के उपयोग तक खत्म होता है. घटिया सामग्री से बनाई सड़कें भारी वाहन और बारिश का वार झेल नहीं पाती, अत: धराशाई हो जाती है. ऐसे हालत में गड्ढे बनते हैं. जहाँ धुल उडती है, और बारिश में पानी भरता है. इसके बाद- पेचवर्क के ठेके होते हैं, जिनमे तगड़ी कमाई होती है.. फिर वही सब दोहराया जाता है, रिश्वत, ठेका और घटिया पेचवर्क... फिर पेचवर्क भी टूट जाता है..!

भ्रष्टाचार की बुनियाद पर बनी यह सड़कें कभी टिक नहीं पाती. यही वजह है कि बार-बार इनके निर्माण की नौबत आती है. संभागीय आयुक्त से इस बारे में बात की तो उन्होंने खुद को मामले से अनजान बताया और कलेक्टर को आदेशित कर मोनिटरिंग और कार्रवाई की बात कही -

भवानी सिंह देता, उदयपुर कमिश्नर : कलेक्टर साहब से कहेंगे, कि सड़कें क्यों टूट रही है. किसी का काम कमजोर है, और मोनिटरिंग कमजोर हैं, तो एक्शन लेंगे!

सवाई माधोपुर के बाद संभावना जताई जा रही है कि मुख्यमंत्री प्रतापगढ़ आए.. ऐसे में स्थानीय लोगों की आस मुख्यमंत्री पर टिकी हैं. क्योंकि अब जनता की सुनने वाला कोई नहीं है. अधिकारी और ठेकेदार भ्रष्टाचार में मशगूल हैं, जिनके जिम्मे ये सड़कें हैं.. देखना होगा अब खबर चलने के बाद प्रशासन कब तक इस ओर कार्रवाई कर पाता है.

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