Sunday, July 26, 2015

प्रतापगढ़ में मिड-डे-मिल योजना की खुली पोल. घटिया सामग्री से बनाया जाता है पोषाहार. ठेकेदारों की घपलेबाजी भी आई सामने. खास रिपोर्ट!








सरकारी स्कूलों में चलाई जाने वाली मिड-डे-मिल योजना! योजना का मकसद बच्चों को स्कूलों से जोड़े रखना. लेकिन यह योजना एक बार फिर सवालों के घेरे में है. मिड-डे-मिल में बनने वाले खाने से स्कूल बिमारियों का घर बने हुए है. इस ख़ास रिपोर्ट में बताएंगे मिड-डे-मिल में बनने वाले घटिया खाने के बारे में! और बताएंगे कैसे इस योजना में ठेकेदारों की चांदी हो रही है.

स्कूलों में पोषाहार योजना यानि मिड-डे-मिल का मकसद है - गरीब परिवारों के बच्चों को स्कूल तक लाना... और पोषाहार का मतलब है - पौष्टिक आहार. लेकिन स्कूलों में मिलने वाला खाना पोषण देने वाला नहीं है. बजाय, यह खाना बच्चों के लिए खतरे का सबब बना हुआ है. प्रतापगढ़ जिले के स्कूलों में खाना खाकर बच्चे बीमार हो रहे हैं. स्कूलों में धडल्ले से घटिया सामग्री से पोषाहार बनाया जा रहा है. स्कूलों में खाना बनाने के लिए घटिया क्वालिटी के गेंहू का इस्तेमाल हो रहा है. सरकारी स्कूलों को मुख्यालय के सख्त निर्देश हैं कि मिड-डे-मिल में आने वाला अनाज उत्तम क्वालिटी का हो. साथ ही इसके लिए समय-समय पर जांच हो. लेकिन ऐसा होता नहीं! मिड-डे-मिल के तहत स्कूलों में अनाज ठेकेदार के माध्यम से उपलब्ध कराया जाता है. इसके बाद खाने से लगाकर उसकी क्वालिटी तक की सारी ज़िम्मेदारी उसी ठेकेदार की होती है. लेकिन मुनाफाखोरी के लालच में ठेकेदार घटिया क्वालिटी के गेंहू स्कूलों में पहुंचाते हैं. क्योंकि ये घटिया क्वालिटी के गेंहू कम दाम पर मिल जाते हैं. यह बच्चे इस बात से अंजान हैं... कि स्कूल इन्हें मिलने वाली रोटी खतरे से खली नहीं है.  बात यहीं ख़त्म नहीं होती, स्कूलों में पहुँचने वाले गेंहू-चावल में भी घपलेबाजी परवान पर है.



50-50 किलो की बोरियों में महज़ 35 से 45 किलो गेंहू और चावल निकलते है... और बिल 50 किलो का थमा दिया जाता है. यानि की ठेकेदार अमूमन 10 किलो गेंहू का पैसा डकार जाता है. यही नहीं, किसी को शक न हो, इसलिए अध्यापकों की अनुपस्थिति में ही ठेकेदार स्कूलों में गेंहू डालने आते हैं. पहला मामला झेलदा प्राथमिक विद्यालय का है. यहाँ 50 किलो गेंहू-चावल के बिल उठाए गए हैं. लेकिन तौलने पर वजन 42 किलो सामने आया. दूसरा मामला नला के विद्यालय से है. जहाँ रसीद में गेंहू की सप्लाई 50 किलो बताई ग़ई. लेकिन तौलने पर असली वजन 40 किलो निकला. इसके बाद जवाहर नगर और महुडीखेडा के पोषाहार की पड़ताल में भी इसी तरह का सच सामने आया. एक बोरी पर आराम से ठेकेदार 10 किलो गायब करते हैं. स्कूलों में कम मात्रा में पोषाहार पहुँच रहा है. और जो पहुँच रहा है, वो खाने के लायक नहीं है. इस बात से खुद अध्यापक परेशान हैं. अध्यापकों का कहना है कि अनाज कम मात्रा में पहुँच रहा है... और घटिया क्वालिटी होने से इस अनाज को खाकर बच्चे बीमार हो रहे हैं.

बाईट - 1 - मनोज मोची, शिक्षक : पोषाहार सप्लायर जब आए तब मैं नोडल पर था, उस समय पोषाहार सप्लायर ने गेंहू कम मात्रा में डाले, फिर क्वालिटी भी ख़राब थी, मैं आया तब तक ठेकेदार जा चूका था, सहायक अध्यापिका ने रसीद दी तो उसमे 50-50 किलो लिखा था, लेकिन मात्रा चेक की तो कम निकली, गेंहू 45-45 किलो थे, और चावल भी 45-45 किलो निकले, मैंने ब्लोक शिक्षा अधिकारी को कहा तो उन्होंने कहा की पूरा माल लीजिए, मैं ठेकेदार के पीछे गया और कहा कि माल सही डालिए, मैं इस माल को नहीं ले जा सकता.

बाईट - 2 - मनोज मोची, शिक्षक : एक तरह तो जो मांग थी, उसके अनुरूप पोशःर नहीं दिया, और जो दिया वो भी घटिया दिया, अब मैं इससे कैसे भोजन बनाऊ, बनाना मजबूरी हो गई है, बच्चे खा पर बीमार हो रहे हैं, सबसे निचे पायदान पर शिक्षक हैं, इसलिए फिर सारी ज़िम्मेदारी भी हम ही पर आ जाती है.

बाईट - 3 - मनोहर लाल, शिक्षक : गेंहू जो है, वो घटिया क्वालिटी के है, 50 किलो नहीं है, 40-45 किलो ही हैं, हम इसका क्या कर सके हैं, हम खुद सोच में हैं की कैसे खिलाएं, बच्चों के स्वास्थ्य पर असर पड़ रहा है, गेंहू की क्वालिटी बहुत घटिया है.

बाईट - 4 - महेश शर्मा, शिक्षक : नल में जो गेंहू है, वो वजन में भी कम हिया, 40 किलो ही मिलते हैं, गेंहू की क्वालिटी भी खराब है, खिलने पर बच्चों को फ़ूड पोइजन भी हो सकता है.

VO. 2 : अध्यापकों के साथ-साथ अभिभावकों में भी घटिया पोषाहार के प्रति रोष है. अभिभावकों का कहना है कि बच्चे घटिया पोषाहार खाकर बीमार होंगे, तो ज़िम्मेदारी कौन लेगा?

बाईट - 5 - बाबूलाल मीणा, अभिभावक : स्कूलों में मेरा बच्चा पढ़ रहा है, स्कूल में घटिया खाना बन रहा है, बच्चा कैसे खाएगा! और बीमार होगा तो ज़िम्मेदारी कौन लेगा.

VO. 3 : प्रशासन के ढीले रवैये से इस तरह के ठेकेदारों के हौंसले बुलंद होते जा रहे हैं. जब हमने अधिकारीयों से इस बारे में बात की, तो उन्होंने आश्वासन का बस्ता थमा दिया.

बाईट - 6 - भावे लाल शर्मा, ब्लोक शिक्षा अधिकारी : विद्यालयों में हम पोषाहार व्यवस्था को ठीक करेंगे, अच्छी व्यवस्था करेंगे, सभी को सरकारी नियमों की पालन के निर्देश दिए जाएंगे, जहाँ निर्देश पालन नहीं होंगे, वहां सख्ती से कारवाई की जाएगी. किसी भी हालत में कोताही बर्दाश्त नहीं की जाएगी.

बाईट - 7 - दुर्गा सुखवाल, जिला शिक्षा अधिकारी : मैं खुद भी पूछती हूँ, और अरनोद का तो लार्ज स्केल पर मामला सामने आया है.. वहाँ तो तोल कर ही नहीं देते, यह सप्लायर की गड़बड़ी है, इसके सुधार के लिए स्कूलों से रसीद मांगी है. ब्लोक अधिकारीयों को भी निर्देशित किया है कि सारे माल की रसीद दिखाई जाए. डिमांड भी दिखाई जाए. ठेकेदारों के खिलाफ कारवाई करना मेरे क्षेत्र में नहीं है... हम तो सूचनाएं दे रहे हैं, जो भी सुचना प्राप्त हुई, उस पर कारवाई का अधिकार हमारे पास नहीं है... यह काम कार्यकारी अधिकारी का है.


VO. 4 : शिक्षा अधिकारीयों ने भी इस बात पर मोहर लगाई कि स्कूलों में घटिया और कम मात्रा में पोषाहार पहुँच रहा है. लेकिन कारवाई की ज़िम्मेदारी का ठीकरा कार्यकारी अधिकारी पर लाकर फोड़ दिया. अब कारवाई के लिए ज़िम्मेदार कार्यकारी अधिकारी की दलील भी सुन लीजिये. जो इस बात को मानने के लिए तैयार ही नहीं हैं, कि स्कूलों में कम मात्रा में और घटिया पोषाहार पहुँच रहा है.

बाईट - 8 - रामेश्वर मीणा, अतिरिक्त कार्यकारी अधिकारी : जो भी गेंहू उठाते हैं, अच्छी क्वालिटी के गेंहू ही लाते हैं, सभी विद्यालयों के प्रधानाध्यापकों को निर्देश हैं, कि गेंहू तोल कर ही लें, अगर तोल कर नहीं देता है, तो कारवाई करें. पोषाहार की गुणवत्ता के लिए टीम गठित की हुई है. शिक्षा अधिकारीयों की देख-रेख में सप्लाई होती है. लेकिन कोई गड़बड़ है, तो निश्चित रूप से कारवाई करेंगे. समय-समय पर निरिक्षण भी करते हैं. 

VO. 5 : अधिकारी के अनुसार समय-समय पर निरीक्षण किया जाता है. अगर वाकई में निरीक्षण होता है. तो व्यवस्था क्यों नहीं सुधरती. कहीं निरीक्षकों की नियत में तो गडबड नहीं? सरकार स्कूलो में पोषाहार के लिए खूब पैसे खर्च कर रही है. लेकिन ठेकेदारों की धांधली की वजह से योजना का फायदा बच्चों तक नहीं पहुँच रहा. बच्चों का अनाज ठेकेदार खा जाते हैं, जो बचा-कूचा बच्चों को मिलता है, वह भी खतरे से खाली नहीं होता. यह हाल जिले भर के स्कूलों का हैं. हमारी पड़ताल के अनुसार घपलेबाजी और घटिया पोषाहार में धरियावद और अरनोद के स्कूल सबसे आगे हैं, इसके बाद प्रतापगढ़, छोटी-सादडी और पीपलखूंट के स्कूल आते हैं. मिड-डे-मिल योजना शुरू से ही सवालों में रही है. स्कूलों को बच्चों का स्वास्थ्य चेक करते रहने के भी सख्त निर्देश हैं. लेकिन कई स्कूलों में वर्षों से स्वास्थ्य परिक्षण हुआ ही नहीं. सूत्रों के मुताबिक़ पूर्व में कुछ ठेकेदारों के खिलाफ कारवाई तो हुई, लेकिन अधिकारीयों की मिली-भगत से मामला रफा-दफा कर दिया गया. यही नहीं, स्कूलों में मेन्यू के मुताबिक़ खाना नहीं दिया जाता. खाने में मौसमी सब्जियों का अक्सर अभाव रहता है. अधिकतर स्कूल दाल-रोटी से काम चला लेते हैं. कई स्कूलों से तो बच्चों की यह भी शिकायत आती रही है, कि उन्हें चावल तक नहीं खिलाए जाते. और कई किलो चावल अध्यापक घर ले जाते हैं. ऐसी कई वजह हैं जिससे मिड-डे-मिल योजना बदहाल हो चली है. सरकार को चाहिए कि मिड-डे-मिल व्यवस्था में सुधार करें. ताकि योजना का लाभ बच्चों को मिल सके.

PRAVESH PARDESHI (प्रवेश परदेशी)
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