Tuesday, July 14, 2015



प्रतापगढ़ के जंगलों से तस्करों ने बांस का सफाया कर दिया है. एक समय था, जब प्रतापगढ़ के वन बांस के लिए प्रसिद्ध माने जाते थे. जिधर देखो उधर बांस ही नजर आते थे. लेकिन आज यहाँ बांस काफी कम दायरे में सिमट कर रह गए हैं. वन विभाग इनके पुनर्स्थापन के लिए आगे आया है.

बांस बेशकीमती होता है! बांस की लकड़ी से कई तरह के फर्नीचर बनते हैं! बांस की लकड़ी की कीमत बाज़ार में अच्छी मिल जाती है! इसी वजह से लोग बांस को इतना पसंद करते हैं. प्रतापगढ़ के जंगलों में कई वर्षों से तस्कर सक्रीय हैं, जिन्होंने बांस का सफाया कर दिया है. कभी प्रतापगढ़ में बांस बड़े पैमाने पर पाए जाते थे... और सीतामाता वन अभयारण्य तो इसके लिए प्रसिद्ध था. लेकिन अब ढूँढने पर ही बांस नजर आते हैं. 

वन विभाग की मानें तो लोगों ने बांस को बहुत काटा है. लोग अक्सर बांस के इम्मेच्योर पेड़ों को काट कर ले जाते हैं. जिस वजह से उसका बीज तैयार नहीं हो पाता. लिहाज़ा नए बांस उगने की संभावना भी कम होती है. वन विभाग की नर्सरी में बांस के पौधे तैयार किए जा रहे हैं.

बांस अपने जीवन काल में एक बार ही बीज देता है. इस वजह से मौजूदा बांस के पेड़ों का सरक्षण भी अहम हो जाता है. वन विभाग अब जंगलों में बांस को फिर से स्थापित करने के प्रयासों में जुट गया है. और यह काम किसानों से अच्छा कोई नहीं कर सकता. क्योंकि बांस की खेती से न सिर्फ बांस सघनता से फैलेंगे, बल्कि किसानों को भी इससे अच्छा फायदा होगा. बांस की बहुउपयोगिता और आय के चलते किसानों का रुझान भी इस ओर बढ़ा है. वन विभाग की मानें तो पिछले पांच वर्षों से चल रहे बम्बू मिशन से भी फायदा मिला है.

विभाग की मानें तो इस वर्ष करीब 100 हेक्टेयर दायरे में बांस लगाए जा रहे हैं. बांस अब कम तादाद में है, लिहाज़ा कीमत भी अच्छी मिल रही है. बांस से तरह-तरह के फर्नीचर बनते हैं. फर्नीचर उद्योग में बांस का बड़ा महत्व है. बांस उगा कर किसान फसलों के साथ-साथ दोहरा लाभ कमा सकते हैं. किसानों को भी चाहिए, बांस उगाने की ओर ध्यान दें. इससे उनका मुनाफा तो बढेगा ही, साथ ही जंगलों में बांस फिर से लौट आएँगे.

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