प्रतापगढ़ में बाल सम्प्रेषण गृह बने 2 साल गुजर गए हैं. बावजूद इसके कई मामलों में विचाराधीन बाल अपचारियों को उदयपुर भेजा जा रहा है. बाल सम्प्रेषण गृह में बच्चों को रखने की अच्छी-खासी केपेसिटी है. लेकिन व्यवस्था की बदहाली के बदौलत यह सम्प्रेषण गृह बेकार पडा है.
दिलीप रोकडिया, सहायक निदेशक, सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता विभाग : बाल सम्प्रेषण गृह बन चुकी है. बिल्डिंग बहुत दूर बनी है. जिले में स्टाफ की बहुत कमी है. मेरे कार्यालय में भी बहुत कमी है. हम अभी उदयपुर भेज रहे हैं. दूरी और स्टाफ की कमी कारण है. दूरी होने से कई व्यवशएं नहीं हो पाती. मुझे ज्वाइन किए 15 दिन हुए हैं. मैं कोशिश करूँगा, कि सारी व्यवस्थाएं ठीक हो जाएँ! केपेसिटी है, मान्यता है, प्रावधान भी है! लेकिन उन्हें संभालने के लिए स्थाई कर्मचारी नहीं है. अभी सरकार से आश्वासन मिला है कि कर्मचारी लगाएंगे. कर्मचारी लगते ही सुरक्षा हो सकेगी. अभी यहाँ 3 कर्मचारी हैं. अगर हमें 2 और कर्मचारी मिल जाएँगे, तो भी हम काम चला लेंगे.
प्रतापगढ़ में दो साल पहले बाल सम्प्रेषण गृह का निर्माण किया गया था. वो इसलिए, ताकि बच्चों को सम्प्रेषण गृह उदयपुर ना भेजना पड़े. और आस-पास के बच्चे यहीं प्रतापगढ़ के सम्प्रेषण गृह में रह सके. लेकिन सरकार की मंशा पर व्यवस्था की बदहाली ने पानी फेर दिया. दो साल पहले बने इस गृह में सिर्फ 10 बच्चे रह रहे हैं. जबकि यहाँ 30 बच्चे रह सकते हैं. 20 बच्चों की जगह अभी भी खाली है. बावजूद इसके यहाँ बच्चों को नहीं भेजा जाता. इस वजह से यहाँ के अधिकतर कमरे बंद ही रहते हैं. महीने में कभी-कबार सफाई के नाम पर ही उन्हें खोला जाता है. भवन को बने दो साल ही गुज़रे हैं, और छतों से पानी गिरना शुरू हो गया है. हाल ही में हुए विभिन्न अपराधों में लिप्त बाल अपचारियों को पुलिस की ओर से उदयपुर बाल सम्प्रेषण गृह भेजा जाता रहा. प्रतापगढ़ का अपना सम्प्रेषण गृह होने के बावजूद कभी यहाँ बच्चों को लाने की कवायद नहीं की गई. और इस पूरी बिगड़ी व्यवस्था के जिम्मेदार "बाल अधिकारिता विभाग" और "समाज कल्याण विभाग" हैं. नए नियमों के तहत इन दोनों विभागों को मिल कर इस सम्प्रेषण गृह का संचालन करना है. इसके अलावा इस सम्प्रेषण गृह के हाल बेहाल है. यहाँ बच्चों को दाल-रोटी के अलावा कुछ नहीं खिलाया जाता. TV के लिए आने वाला बजट भी अधिकारी डकार जाते हैं. दूध और चाय देखे तो महीनों गुजर गए हैं.
कर्मचारी - मैं मेरे घर से रोज दूध ला रही हूँ. यहाँ दूध नहीं आता है आगे से. जब से यहाँ आई हूँ, तब से रोज दूध लाती हूँ. रोज एक ग्लास दूध लाती हूँ. खाने में चावल-रोटी बनती है. हरी सब्जी तो आती है, लेकिन फल नहीं आते.
हैं ना चौकाने वाली बात? कर्मचारी का कहना है कि वे रोज अपने घर से एक ग्लास दूध लाती है. इंसानियत के नाते जैसे-तैसे यह गरीब कर्मचारी महिला घर से एक ग्लास दूध तो ले आती है. लेकिन इस एक ग्लास दूध में दस बच्चों का काम नहीं चल पाता. इस महिला के अनुसार, यहाँ चावल, दाल, रोटी के अलावा कुछ नहीं खिलाया जाता. फल तो कभी यहाँ लाए ही नहीं जाते. व्यवस्था की बदहाली के चलते रहने वाले बच्चे परेशान होने को मजबूर हैं. अधिकारी से जब हमने इस बारे में बात की, तो उन्होंने कर्मचारियों की कमी को कारण बता कर पल्ला झाड लिया.
कर्मचारी - मैं मेरे घर से रोज दूध ला रही हूँ. यहाँ दूध नहीं आता है आगे से. जब से यहाँ आई हूँ, तब से रोज दूध लाती हूँ. रोज एक ग्लास दूध लाती हूँ. खाने में चावल-रोटी बनती है. हरी सब्जी तो आती है, लेकिन फल नहीं आते.
हैं ना चौकाने वाली बात? कर्मचारी का कहना है कि वे रोज अपने घर से एक ग्लास दूध लाती है. इंसानियत के नाते जैसे-तैसे यह गरीब कर्मचारी महिला घर से एक ग्लास दूध तो ले आती है. लेकिन इस एक ग्लास दूध में दस बच्चों का काम नहीं चल पाता. इस महिला के अनुसार, यहाँ चावल, दाल, रोटी के अलावा कुछ नहीं खिलाया जाता. फल तो कभी यहाँ लाए ही नहीं जाते. व्यवस्था की बदहाली के चलते रहने वाले बच्चे परेशान होने को मजबूर हैं. अधिकारी से जब हमने इस बारे में बात की, तो उन्होंने कर्मचारियों की कमी को कारण बता कर पल्ला झाड लिया.
दिलीप रोकडिया, सहायक निदेशक, सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता विभाग |
दिलीप रोकडिया, सहायक निदेशक, सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता विभाग : बाल सम्प्रेषण गृह बन चुकी है. बिल्डिंग बहुत दूर बनी है. जिले में स्टाफ की बहुत कमी है. मेरे कार्यालय में भी बहुत कमी है. हम अभी उदयपुर भेज रहे हैं. दूरी और स्टाफ की कमी कारण है. दूरी होने से कई व्यवशएं नहीं हो पाती. मुझे ज्वाइन किए 15 दिन हुए हैं. मैं कोशिश करूँगा, कि सारी व्यवस्थाएं ठीक हो जाएँ! केपेसिटी है, मान्यता है, प्रावधान भी है! लेकिन उन्हें संभालने के लिए स्थाई कर्मचारी नहीं है. अभी सरकार से आश्वासन मिला है कि कर्मचारी लगाएंगे. कर्मचारी लगते ही सुरक्षा हो सकेगी. अभी यहाँ 3 कर्मचारी हैं. अगर हमें 2 और कर्मचारी मिल जाएँगे, तो भी हम काम चला लेंगे.
कर्मचारियों की कमी भी एक परेशानी है, बात मानी जा सकती है. लेकिन सरकार से मिलने वाली सुविधा बच्चों को नहीं मिल रही है, इस बात से भी इनकार नहीं किया जा सकता. सरकार इस सम्प्रेषण गृह के संचालन लिए बजट भी पूरा देती है. लेकिन उसका फायदा बच्चों से ज्यादा अधिकारी लेते हैं. यहाँ TV से लगाकर खाने-पीने की सारी चीजे जैसे दूध, फल आदि का बजट विभाग को मिलता है. लेकिन बच्चों तक वह नहीं पहुँचता. इस तरह के वाक्ये विभागीय अधिकारीयों की नियत पर सवाल खड़े करते हैं. इस सम्प्रेषण गृह की हालत, किसी कारागृह से भी बदतर है. और बच्चे मजबूर हैं, कई निराश्रित हैं, जो यह गृह छोड़ कहीं जा नहीं सकते.
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