प्रदेश में एक तरफ बारिश से बाड़ के हालत पैदा हो गए हैं. वहीँ प्रतापगढ़ में बारिश के बिना किसानों की कमर टूटती जा रही है. पानी के बिना फसलें सुख रही है. हालत यह है कि अब इन फसलों में इल्ली पड़ने लगी है. जिले भर के किसान इल्ली के प्रकोप से बेहद डरे हुए हैं. इल्ली जिले भर की फसलें चट कर रही हैं!
इन्द्रदेव इस बार प्रतापगढ़ पर महरबान नजर नहीं आ रहे! प्रतापगढ़ में बुवाई के बाद फसलें अब सूखने की कगार पर हैं. इससे बड़े पैमाने पर फसलें तबाह होने का खतरा पैदा हो गया है. पहली बारिश के बाद किसानों ने बुवाई कर दी थी. किसानों को आस थी कि इस बार बारिश अच्छी होगी. लेकिन बुवाई के बाद एक बार भी पानी नहीं गिरा. बारिश की एक बूंद भी प्रतापगढ़ में नहीं गिरी है, लिहाज़ा फसलें अब सुख रही है. कई जगह तो फसलें ख़त्म होने की कगार पर है. पानी नहीं गिरने से एक नई समस्या ने जन्म ले लिया है. सुख रही फसलों को इल्ली धड़ल्ले से चट कर रही है. तस्वीरों में आप देख सकते हैं. कुछ इसी तरह इल्ली फसलों पर कहर ढा रही है. किसानों को यह दृश्य कतई पसंद नहीं आएँगे. इल्लियाँ खतरनाक जीव है. इल्लियों का झुण्ड बड़ी संख्या में आता है, और फसलें चट कर जाता है. जिले भर के खेतों में इल्लियों का प्रकोप है. हर फसल को बस इल्ली खा रही है. इल्ली से बचने के लिए किसानों को कोई तरीका नजर नहीं आ रहा है. सोयाबीन के पत्ते तो इल्ली को बहुत पसंद आ रहे हैं. इल्ली सोयाबीन के पत्तों पर बैठी रहती है. और देखते ही देखते लाखों पत्ते चट कर जाती है. इसके अलावा बोई गई दूसरी फसलों में भी इल्ली से खतरा बढ़ता जा रहा है.
किसानों की यह चिंता जायज़ है! इल्ली के छुटकारा पाने के लिए किसान कीटनाशकों का उपयोग करते हैं. लेकिन इल्ली दुबारा फसलों पर आकर बैठ जाती है. आइये समझ लेते हैं इल्ली को भी-
कई कैटरपिलर का रंग अप्रकट होता है और वे उन पौधों के सदृश दिखते हैं जिसका वे भक्षण करते हैं और उनके शरीर के कुछ हिस्से ऐसे भी हो सकते हैं जो पौधे की नक़ल करते हों जैसे कांटे. उनका आकार 1 मिमी तक छोटा होने से लेकर 3 इंच तक होता है. इनमें से कुछ, पर्यावरण की वस्तुओं की तरह लगते हैं जैसे कि पक्षी की बीट. परेशान किये जाने पर कैटरपिलर शिकारियों से बचने के लिए एक रेशम धागे का उपयोग करते हुए शाखाओं से नीचे लटक जाते हैं. कैटरपिलर को "खाने की मशीन" कहा गया है और वे पत्तियों को अंधा-धुंध खाते हैं. अधिकांश प्रजातियां, अपने शरीर के बड़ा होने के साथ अपनी त्वचा का चार या पांच बार त्याग करते हैं और वे अंततः एक वयस्क रूप में कोषस्थ कीट बन जाते हैं. कैटरपिलर बहुत जल्दी बड़े हो जाते हैं. मुख्य रूप से पत्तियां खाकर, कैटरपिलर काफी क्षति पहुंचाते हैं. क्षति की प्रवृत्ति, एकल जोत की कृषि प्रथाओं द्वारा बढ़ जाती है, विशेष रूप से जहां कैटरपिलर विशेष रूप से खेती के अंतर्गत मेजबान पौधे के अनुकूल ढल गया हो. कपास बोलवोर्म भारी नुकसान का कारण बनता है. अन्य प्रजातियां खाद्य फसलों का भक्षण करती हैं. कैटरपिलर, कीटनाशक, जैविक नियंत्रण और कृषि प्रथाओं के प्रयोग के माध्यम से कीट नियंत्रण का निशाना रहे हैं. कई प्रजातियां कीटनाशक के लिए प्रतिरोधी बन गई हैं.
इल्ली किसानों की फसलों को तबाह कर रही है. जिले में बुवाई के आंकड़ों पर नजर डालते हैं-
फसल - सोयाबीन, लक्ष्य - 118000, बुवाई - 116000
फसल - मक्का, लक्ष्य - 50000, बुवाई - 49000
फसल - उड़द, लक्ष्य - 3000, बुवाई - 2900
फसल - मूंगफली, लक्ष्य - 1000, बुवाई - 800
फसल - तिल, लक्ष्य - 1000, बुवाई - 900
फसल - कपास, लक्ष्य - 1000, बुवाई - 300
फसल - अन्य, लक्ष्य - 4000, बुवाई - 1000
लक्ष्य योग - 178000, बुवाई योग - 170900
(आंकड़े हेक्टेयर में)
आंकड़ों के अनुसार 90% किसान बुवाई कर चुके हैं. इन किसानों की किस्मत पर बारिश के नहीं, खतरे के बादल मंडराने लगे हैं. इल्लियों को सोयाबीन सबसे ज्यादा पसंद होती है. इसलिए सोयाबीन पर सबसे ज्यादा खतरा है. और बोई गई फसलों में सबसे ज्यादा सोयाबीन ही है! हमारी पड़ताल में यह सामने आया है कि प्रोफेनोफोल का छिडकाव कर इल्ली से बचा जा सकता है. इसके अलावा मिथाइल पैराथियोन डस्ट का भुरकाव भी अच्छा उपाय है. लेकिन असली राहत तो बारिश आने से ही मिलेगी. बारिश आने से फसलों का विकास तो शुरू होगा ही, साथ ही इल्ली भी अपने-आप चली जाएगी. फिलहाल किसान इल्ली के प्रकोप से चिंता में डूबे नजर आ रहे हैं.
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