प्रतापगढ़ की सबसे महत्वपूर्ण नगद-उपज है– अफीम, जिसे ‘काला सोना’ भी कहते हैं. जिले में अफीम उगाने वाले औसतन 6781 काश्तकार लाइसेंस धारक हैं. लेकिन अब अफीम उगाने वाले काश्तकारों का भविष्य संकट में है. इस बार विभाग ने कई लोगों के पट्टे निरस्त करने का फैसला लिया है. जिससे जिले भर के अफीम काश्तकार पट्टे वापिस लौटाने की पुरजोर मांग कर रहे हैं.
अफीम खेती के लिए हर साल विभाग काश्तकारों को अफीम उगाने के पट्टे जारी करता है. एक औसत उन्हें दे दी जाती है, जिसके बूते उन्हें अफीम उगानी होती है. यह औसत काश्तकारों को किसी भी हाल में पूरी करनी होती है. ऐसा ना होने पर लाइसेंस रद्द कर दिए जाते हैं. इस बार बेमौसम बारिश और ओलावृष्टि से जिले भर की अफीम खराब हुई. लिहाज़ा उत्पादकता में भी कमी आई, और औसत पूरी नहीं हुई. अफीम नीति वर्ष 2014-15 में संशोधन के बाद जिले में 743 और कृषकों को 10-10 आरी के लाइसेंस जारी किए गए थे. विभाग की ओर से वर्ष इस बार जिले में 5 हजार 136 कृषकों को अफीम बुवाई के लाइसेंस जारी किए गए थे. इस प्रकार कुल 5879 कृषकों को कुल 940.15 हैक्टैयर में बुवाई करनी थी. लेकिन 35 कृषकों ने बुवाई नहीं की. इस प्रकार कुल 911.176 हैक्टेयर में बुवाई की गई. जिले में इस वर्ष हुई वास्तविक बुवाई -
तहसील कृषक रकबा
अरनोद 602 85.02
प्रतापगढ़ 2290 349.35
छोटीसादड़ी 2952 492.17
योग 5844 911.17
(आंकड़े नारकोटिक्स विभाग के अनुसार, रकबा हैक्टेयर में)
इस तरह 5879 काश्तकारों में से 5844 काश्तारों ने ही बुवाई की. ऊपर से जिन्होंने की, उन्हें मौसम की मार झेलनी पड़ी. ऐसे में उत्पादकता में कमी आना ज़ाहिर था. ऐसे काश्तकार जिनकी अफीम मौसम की मार से बर्बाद हुई, उनके लाइसेंस रद्द कर दिए गए. सिर्फ इसलिए क्योंकि वो औसत नहीं दे पाए. विभाग ने यह समझने की कोशिश तक नहीं की... अफीम मौसम की मार से बर्बाद हुई है. किसानों ने तो खून-पसीना लगाया था अफीम उगाने में. आखिर किसानों की महनत में कहाँ कमी थी?! ऐसे किसान जिनके अफीम पट्टे रद्द कर दिए गए हैं, वे सड़कों पर उतर आए हैं. और अपनी पट्टे लौटाने की मांग कर रहे हैं.. इस रोती आवाज़ में काश्तकार की बात भी सुन लीजिए!
सूरज मल, अफीम काश्तकार : हम काश्तकार इतने दुखी है, कि हमारे साथ दुर्व्यवहार हो रहा है, दूसरे देशों में तो 2 किलो की औसत देने वालो को भी लाइसेंस है, हम तो 60 की औसत दे रहे हैं, फिर भी अन्याय हो रहा है.
अफीम काश्तकारों का कहना है कि दुनिया में ऐसे 20 देश हैं, जो कि अफीम की अवैध खेती कर रहे हैं. कई देशों में तो काश्तकार 2 किलो अफीम की औसत दे रहे हैं. यहाँ तो ये 60 किलो की औसत दे रहे हैं. फिर भी इनके साथ अन्याय हो रहा है. भारत अन्य देशों से अफीम की दवाई आयात करता है. जो कि महँगी भी होती है. अगर इन काश्तकारों को फिर अफीम उगाने का मौका दिया जाए, तो यह सरकार को अच्छी अफीम दे सकते हैं. जिससे दवाइयां बनेगी, जो सस्ती भी होंगी. किसानों का कहना भी सही है, अगर उनकी मेहनत में कमी होती, तो बात अलग होती. लेकिन मौसम की मार पर किसका बस चलता है. मौसम की यह दुगुनी मार है जो किसान झेल रहे हैं. विभाग को भी समझना चाहिए... और किसानों को फिर पट्टे देने चाहिए!
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