प्रतापगढ़ के जंगल किसी ज़माने में सागवान के लिए विख्यात थे! कहा जाता था कि प्रतापगढ़ जंगलों में जिधर देखो उधर सागवान ही सागवान नजर आते थे. लेकिन आज यहाँ सागवान ना-मात्र रह गए हैं. सागवान तस्करों ने प्रतापगढ़ के जंगलों से सागवान साफ़ कर दिया है. लिहाज़ा आज प्रतापगढ़ के जंगलों की शान सागवान ख़त्म होने की कगार पर हैं!
सागवान का पेड़ बेशकीमती होता है! इसकी लकड़ी भी बड़ी महँगी बिकती है! साग्वान से तरह-तरह के फर्नीचर बनते हैं! इसलिए सागवान मूल्यवान हो जाता है. प्रतापगढ़ के जंगलों में सागवान तस्कर माफिया सक्रीय है. हर रोज़ यहाँ सागवान की तस्करी होती है. प्रतापगढ़ के वन कभी सागवान के लिए प्रसिद्ध थे. राजस्थान में सबसे ज्यादा सागवान यहीं मिला करता था. लेकिन आज हालत बिलकुल अलग है! आज सागवान लगभग-लगभग ख़त्म हो गए हैं. आज यहाँ सागवान के ठूंठ ही नजर आते हैं. तस्कर माफिया का यहाँ ऐसा आतंक है, की वन विभाग भी कोई कारवाई नहीं करता. आज यहाँ सागवान की वो स्थिति है, जिसे वन प्रेमी कतई पसंद नहीं करेंगे. वन प्रेमियों को यह सुचना विचलित कर सकती है, लेकिन यह सच है, कि सागवान के लाखों पेड़ों का सफाया, प्रतापगढ़ के जंगलों से हो चूका है.
आपको जानकार हैरानी होगी, कि पिछले वर्ष पौने पांच सौ मामले अवैध कटाई के पकडे गए थे. विभागीय सूत्रों के मुताबिक़ वर्ष 2014 से 2015 में कुल 763 मामले वन अधिनियम के तहत बनाए गए थे. इनमे 475 मामले कटाई के थे. जिनमे कुल 89 लाख 19 हजार 254 रूपए की वसूली हुई. वन माफियाओं का मकडजाल किस हद तक जा फैला है, अंदाज़ा लगाया जा सकता है. इधर प्रशासन इस ओर कोई सख्त एक्शन नहीं ले पा रहा.
वन विभाग की मानें तो सागवान के पुनरुत्पादन के लिए हज़ारों नए पौधे लगाए जा रहे हैं. लेकिन कहीं न कही सागवान के पुनरुत्पादन की बात करने वाला प्रतापगढ़ का वन विभाग ही... सागवान के खात्मे का ज़िम्मेदार है. विभाग की ओर से सागवान तस्करी पर कभी कोई प्रभावी कारवाई नहीं की गई. लिहाज़ा खुले आम कटाई चल रही है और तस्करों के हौंसले बुलंद है. विभाग को चाहिए कि पौधे लगाने के अलावा, सागवान माफिया पर कोई सख्त एक्शन ले! ताकि बेशकीमती सागवान को बचाया जा सके!
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