Tuesday, September 15, 2015

कृषि उपज मंडी में कहाँ खर्च हो रहा है पैसा? मंडी की आय बढ़ी लेकिन सुविधा नहीं. 2014-15 में 553.48 लाख की आय. अतिक्रमण पर भी मौन प्रशासन!







प्रतापगढ़ कृषि उपज मंडी उदयपुर संभाग की सबसे बड़ी मंडी है. यह मंडी आय में भी दूसरी मंडियों की तुलना में अव्वल है. बावजूद इसके यहाँ इतनी अव्यवस्थाओं का आलम है, कि काश्तकार परेशान होते नजर आते हैं. यहाँ उपज बेचने आने वाले काश्तकारों को मुलभुत सुविधा तक मुहैया नहीं है, ऐसे में सवाल यह उठता है कि कहाँ खर्च हो रहा है आय का पैसा!?

प्रतापगढ़ कृषि उपज मंडी "अ" श्रेणी की मंडी है. साथ ही यह संभाग की सबसे बड़ी मंडी है. जिस वजह से आय के लिहाज़ से भी अव्वल रहती है. लेकिन यहाँ हर तरह परेशानियों का आलम है. यहाँ जगह की कमी होने से नीलामी चबूतरों पर व्यापारी कब्ज़ा जमाए बैठे हैं... जिससे आए दिन विवाद की स्थिति पैदा होती है. यहाँ अधिकारी और कर्मचारियों "बी" श्रेणी के ही स्वीकृत है. इसमें से आधे रिक्त हैं. यहाँ सचिव का एक पद, कनिष्ट लिपिक के सात पद, चतुर्थ श्रेणी कर्मचारियों के 3 पद स्वीकृत हैं... यहाँ सहायक सचिव, पर्यवेक्षक, लेखाकार, वरिष्ट लिपिक समेत कई पद खाली हैं...


ऐसे में प्रतापगढ़ समेत अरनोद, छोटी सादडी , सालमगढ़ और धरियावद गौण मंडियों की व्यवस्था चौपट होती जा रही है. दूसरी तरफ फल और सब्जी मंडी को बगवास में स्थानांतरित नहीं किए जाने से भी व्यवस्था बिगड़ रही है. इससे भी किसानों की परेशानी बढ़ रही है. आंकड़ो पर नजर डाली जाए-


वर्ष 2010-11 में मंडी को 292.08 लाख रूपए की आय हुई. वर्ष 2011-12 में 387.67 लाख रूपए की आय हुई. वर्ष 2012-13 में 548.87 लाख रूपए की आय हुई. वर्ष 2013-14 में 526.68 लाख रूपए की आय हुई. और अब 2014-15 में 553.48 लाख रूपए की आय हुई है. आंकड़ों को देख पता चलता है कि मंडी की आय में भी किस कदर इजाफा हो रहा है. बावजूद इसके मुलभुत व्यवस्थाओं की कमी होना मंडी के खर्च पर सवालिया निशान लगता है.



  1. यहाँ लाइटों की समुचित व्यवस्था नहीं है, रात में यहाँ अँधेरा छा जाता है. 
  2. अनाज लाने वाले किसानों के लिए छत नहीं है. लिहाज़ा बारिश में अनाज बाहर ही भीगता है. जिससे कई बार किसानों को बड़ा नुकसान उठाना पड़ता है. 
  3. पार्किंग की व्यवस्था नहीं है, लिहाज़ा जाम लग जाता है. 
  4. पीने के पानी तक की ठीक व्यवस्था नहीं है, जिससे किसान प्यासे घूमते रहते हैं. 
  5. किसान भवन में कर्मचारी नहीं है, जिससे किसानों को महंगे दाम पर बहर कहीं ठहरना पड़ता है, या फिर कभी तो इधर-उधर ही रात काटते हैं... 
  6. सुरक्षाकर्मी नहीं है, जिस वजह से उपज चोरी के मामले भी बढ़ रहे हैं.ऐसे कई कारण है, जिनकी वजह से मंडी के आय खर्च पर संदेह होता है. 
553.48 लाख रूपए कमाने वाली मंडी किसानों को मुलभुत सुविधा नहीं दे पा रही है, जो शर्मनाक बात है. मंडी अधिकारी कार्रवाई करने के बजाय औपचारिकता करने में मशगूल दिखाई दे रहे हैं.

संतोष मोदी, मंडी सचिव : मंडी समिति में आय को ध्यान रखते हुए निर्माण कार्य के प्रस्ताव लिए हैं. जमीन की कमी होने से सीजन में, चबूतरों पर व्यापारी कब्जे करते हैं. इस पर कठोर कार्रवाई करने की व्यवस्था की है, ताकि काश्तकारों को लाभ मिले. अभी हमने पांच लाइसेंस निलंबित किए हैं, और समय-समय पर हम कार्रवाई करते रहते हैं...

 सरकारी विभागों की कोई भी इकाई हो, पैसों का सदुपयोग कही नहीं होता. प्रतापगढ़ की कृषि मंडी भी इसी का उदाहरण है. जहाँ आए तो करोड़ों की है, लेकिन किसानों को मिलती कोई सुविधा नहीं है...

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