2 सितम्बर को शालोम स्कूल के एक अध्यापक पंकज डेविडसन ने अपने ही स्कूल की दसवीं कक्षा में पढ़ रही छात्रा सलोनी पालीवाल का अपहरण किया. घटना के बाद परिजनों की रिपोर्ट पर पुलिस ने तफ्तीश शुरू की. कार्रवाई नहीं होता देख जिले भर में आन्दोलन भड़क उठा. गली-गली में बालिका को वापिस लाने के लिए आन्दोलन होने लगे. पुलिस की ओर से कोई कार्रवाई न होता देख, लोगों का भरोसा डगमगाने लगा. अब जिले में नया आन्दोलन छिड़ चूका था. जिसमें प्रदेश भर से तो लोग पहुंचे ही, साथ ही निकटवर्ती मध्यप्रदेश और गुजरात से भी लोग शामिल हुए. यह मामला अब तूल पकड़ता जा रहा था. एक दिन प्रतापगढ़ बंद रखा गया. पुलिस अब सोच में थी, क्योंकि बालिका और शिक्षक का कोई सुराग नहीं लग रहा था. शिक्षक के पास एक फोन था, जो भी लगातार बंद था.. शिक्षक की आखरी लोकेशन मुंबई आई, तो पुलिस ने अपनी टीम को मुंबई रवाना कर दिया. अब पुलिस की टीम लगातार मुंबई, इन्दोर और रतलाम में दबिश दे रही थी. पुलिस कार्रवाई के लिए दिन-रात एक कर रही थी, और इधर प्रतापगढ़ में आन्दोलन छिड़ चूका था. लगातार प्रयासों के बाद 10 सितम्बर को शिक्षक और बालिका की बरामदगी हो गई. जब पुलिस ने शिक्षक से पूछताछ की, तो एक फ़िल्मी कहानी निकल कर सामने आई... आपको सिरे से अध्यापक के बारे में और पूरी कहानी के बारे में बताते हैं-
इस युवक का नाम है पंकज डेविडसन... इसका जन्म मध्य प्रदेश के झाबुआ में हुआ था. यह आनाथ था, जिसे रतलाम के एक परिवार ने गोद लिया. पंकज के नए माँ-बाप नौकरी किया करते थे. माँ नर्स थी तो वहीँ पिता की रेलवे में नौकरी कर रहे थे. पंकज रतलाम में ही रह कर बड़ा हुआ. इसने 1987 में B.A. और 1991 में M.A. की पढ़ाई पूरी कर ली. पढने में पंकज होनहार था, और अंग्रेजी का विद्वान भी. लेकिन गरीबी से लाचार था. पंकज की शादी हुई, तो पत्नी अपने बच्चों के साथ पंकज के ही दोस्त के साथ भाग गई. चूँकि पंकज ने सारी संपत्ति पत्नी के नाम की थी, इसलिए पत्नी ने छल कर संपत्ति भी बेच दी. इस तरह पंकज की सारी धन-दौलत ख़त्म हो गई. पंकज अब अपनी माँ के साथ अकेला रहता. गरीबी के चलते पंकज ने कई बार भीख मांग कर काम चलाया. पंकज अपनी माँ को लेकर जयपुर आया. जहाँ इसने मजदूरी कर पेट पालना शुरू किया. यहीं उसकी माँ को ब्रेन-हेम्ब्रेज हो गया, जिससे उसकी मौत हो गई. माँ की मौत के बाद पंकज फिर रतलाम लौट आया, और इधर-उधर मजदूरी कर पेट पालने लगा.
गरीबी के चलते पंकज अक्सर परेशान रहता. इसी बीच उसकी मुलाक़ात शालोम स्कूल के प्रबंधक से हुई. पंकज ने अपने ज्ञान का और इंग्लिश का परिचय दिया, जिससे प्रबंधक प्रभावित हुए और नौकरी पर रख लिया. पंकज अब शालोम स्कूल में बतौर अध्यापक काम करने लगा. सभी पंकज के अध्यापन से प्रभावित थे. तनख्वाह कम थी, जिस बात से पंकज संतुष्ट नहीं था. गुज़ारा करने के लिए पंकज को इधर-उधर ट्यूशन पढ़ानी पढ़ती. पंकज प्रतापगढ़ में एक किराए के कमरे में रहने लगा. अपने स्कूल की दसवीं कक्षा में पढने वाली सलोनी पालीवाल से पंकज करीब आया. पंकज सलोनी को ट्यूशन पढ़ाने लगा. पंकज के हाव-भाव से परिजनों को कभी नहीं लगा, कि यह अब तक की सबसे घिनौनी हरकत को अंजाम देगा. परिजनों ने पंकज पर भरोसा किया. अपनी बच्ची सलोनी को पंकज के साथ अकेले भेजने में भी परिजनों को कभी भय महसूस नहीं हुआ. बच्ची पंकज के साथ अकेले बैठ कर पढ़ाई करती. इस दौरान पंकज ने बालिका को बहलाना-फुसलाना शुरू कर दिया. पंकज ने बालिका के सामने ज़ाहिर किया कि वह नौकरी से परेशान है और कुछ नया करना चाहता है जिसमें उसे अच्छा पैसा मिले, जहाँ वो सुकून से जिंदगी काट सके. बालिका को भी उसने इसी बात के लिए प्रेरित किया. बालिका को लगने लगा कि उसे भी आज़ाद होने की ज़रूरत है... बालिका को पंकज ने बताया कि मुंबई फिल्म इंडस्ट्री में काम ही काम है. ऐसे में बालिका बरगलाने की वजह से पंकज के साथ हो गई...
अब दोनों ने 2 सितम्बर को भागने का प्लान बनाया. 2 सितम्बर के दिन सलोनी और पंकज गोपनीय तरीके से बस में बैठ कर दलोट पहुँच गए. दलोट से जावरा गए. जावरा से रेल पकड़ पर रतलाम पहुचे. रतलाम ये दोनों देर तक रुके, फिर वहां ट्रेन पकड़ पर मुंबई चल दिए. मुंबई से फिर ये लोग मध्य प्रदेश के विदिशा गए. विदिशा से भोपाल रवाना हुए. भोपाल से सीहोर गए. सीहोर में देर रात तक रेलवे स्टेशन पर रहे. यह एक ऐसा क्षण था, जब ये पकड़ में आ सकते थे. ट्रेन लेट थी, फिर भी दोनों संदिग्ध रूप से रेलवे स्टेशन पर घूम रहे थे. पुलिसकर्मियों ने इनसे पूछताछ कि, तो पंकज ने बताया की यह बच्ची मानसिक रूप से बीमार है. बच्ची ने भी कहा कि यह युवक उसके पिता सामान है, और उसे आपत्ति नहीं है. दोनों ने दरगाह पर जाने की बात कही. संतुष्टि होने पर पुलिस ने इन्हें छोड़ दिया. यहाँ से लम्बा सफ़र कर ये फिर रतलाम पहुंचे. इस दरमियान पुलिस की टीम मुंबई में भी सरगर्मी से तलाश कर रही थी, जहाँ तलाश में कुछ परिजन भी थे. पुलिस के आने की भनक पंकज को लग गई थी, ऐसे में वे मुंबई छोड़ चुके थे. इसके बाद एक और ऐसा क्षण आया जब दोनों की गिरफ़्तारी होने वाली थी. पंकज का फोन चालु हुआ, लेकिन पहले ही किसी ने कॉल कर दिया, जहाँ से पंकज को पुलिस की भनक लग गई, जिस वजह से ये रफू-चक्कर हो गए. अब इन्होने ट्रेन के बजाय बस का रास्ता अपनाया. बस से ये उज्जैन पहुंचे. वहां से लोकल ट्रेन पकड़ी. इस पूरे लम्बे सफ़र के बाद आखिर में ये जैसे-तैसे रतलाम पहुंचे. अब तक पुलिस आरोपी और बालिका के फोटो को सोशियल मिडिया पर फैला चुकी थी. चप्पे-चप्पे पर दोनों का इंतजार हो रहा था. रतलाम में एक चौराहे पर पुलिसकर्मियों द्वारा दोनों को पकड़ लिया गया. फोटो से मिलान करने पर दोनों वही निकले, और ऐसे पुलिस को बड़ी कामयाबी हाथ लगी... रतलाम से दोनों को प्रतापगढ़ लाया गया. जहाँ बालिका को परिजनों को सरक्षित सौंपा गया.
श्री कालू राम रावत, एसपी : गत 2 सितम्बर को प्रतापगढ़ के निजी स्कूल की छात्रा को अध्यापक ले गया था. इस पर आपराधिक प्रकरण पंजीबध था. 5-6 पुलिस टीम प्रतापगढ़ जिले के अलावा रतलाम, उज्जैन, मुंबई और सीहोर थी, पुलिस ने बड़ी मेहनत की. तथ्य जुटे. जहाँ जहाँ तथ्य मिले, वहां पुलिस से सहयोग किया. रतलाम हमने दोनों को डिटेंन किया. बालिका का चिकित्सा परिक्षण और जांच कराई जा रही है. इसमें नाबालिग छात्रा का अपहरण, उसके साथ लैंगिक अपराध की धाराएं लगाईं है...
कार्रवाई के बाद मानों माहौल ही बदल गया है. परिजनों समेत पुलिस के चेहरे पर भी मुस्कुराहट है. सलोनी की तलाश ख़त्म हो चुकी है! पुलिस की इस कामयाबी के बाद पूरे जिले ने चैन की सांस ली है. प्रतापगढ़ एसपी कालूराम रावत को बधाइयाँ मिलने का दौर जारी है. क्योंकि अब सलोनी सुरक्षित घर आ चुकी है, जिसकी माँ ने 9 दिनों में पहली बार रोटी का कोर खाया है.
इस युवक का नाम है पंकज डेविडसन... इसका जन्म मध्य प्रदेश के झाबुआ में हुआ था. यह आनाथ था, जिसे रतलाम के एक परिवार ने गोद लिया. पंकज के नए माँ-बाप नौकरी किया करते थे. माँ नर्स थी तो वहीँ पिता की रेलवे में नौकरी कर रहे थे. पंकज रतलाम में ही रह कर बड़ा हुआ. इसने 1987 में B.A. और 1991 में M.A. की पढ़ाई पूरी कर ली. पढने में पंकज होनहार था, और अंग्रेजी का विद्वान भी. लेकिन गरीबी से लाचार था. पंकज की शादी हुई, तो पत्नी अपने बच्चों के साथ पंकज के ही दोस्त के साथ भाग गई. चूँकि पंकज ने सारी संपत्ति पत्नी के नाम की थी, इसलिए पत्नी ने छल कर संपत्ति भी बेच दी. इस तरह पंकज की सारी धन-दौलत ख़त्म हो गई. पंकज अब अपनी माँ के साथ अकेला रहता. गरीबी के चलते पंकज ने कई बार भीख मांग कर काम चलाया. पंकज अपनी माँ को लेकर जयपुर आया. जहाँ इसने मजदूरी कर पेट पालना शुरू किया. यहीं उसकी माँ को ब्रेन-हेम्ब्रेज हो गया, जिससे उसकी मौत हो गई. माँ की मौत के बाद पंकज फिर रतलाम लौट आया, और इधर-उधर मजदूरी कर पेट पालने लगा.
गरीबी के चलते पंकज अक्सर परेशान रहता. इसी बीच उसकी मुलाक़ात शालोम स्कूल के प्रबंधक से हुई. पंकज ने अपने ज्ञान का और इंग्लिश का परिचय दिया, जिससे प्रबंधक प्रभावित हुए और नौकरी पर रख लिया. पंकज अब शालोम स्कूल में बतौर अध्यापक काम करने लगा. सभी पंकज के अध्यापन से प्रभावित थे. तनख्वाह कम थी, जिस बात से पंकज संतुष्ट नहीं था. गुज़ारा करने के लिए पंकज को इधर-उधर ट्यूशन पढ़ानी पढ़ती. पंकज प्रतापगढ़ में एक किराए के कमरे में रहने लगा. अपने स्कूल की दसवीं कक्षा में पढने वाली सलोनी पालीवाल से पंकज करीब आया. पंकज सलोनी को ट्यूशन पढ़ाने लगा. पंकज के हाव-भाव से परिजनों को कभी नहीं लगा, कि यह अब तक की सबसे घिनौनी हरकत को अंजाम देगा. परिजनों ने पंकज पर भरोसा किया. अपनी बच्ची सलोनी को पंकज के साथ अकेले भेजने में भी परिजनों को कभी भय महसूस नहीं हुआ. बच्ची पंकज के साथ अकेले बैठ कर पढ़ाई करती. इस दौरान पंकज ने बालिका को बहलाना-फुसलाना शुरू कर दिया. पंकज ने बालिका के सामने ज़ाहिर किया कि वह नौकरी से परेशान है और कुछ नया करना चाहता है जिसमें उसे अच्छा पैसा मिले, जहाँ वो सुकून से जिंदगी काट सके. बालिका को भी उसने इसी बात के लिए प्रेरित किया. बालिका को लगने लगा कि उसे भी आज़ाद होने की ज़रूरत है... बालिका को पंकज ने बताया कि मुंबई फिल्म इंडस्ट्री में काम ही काम है. ऐसे में बालिका बरगलाने की वजह से पंकज के साथ हो गई...
अब दोनों ने 2 सितम्बर को भागने का प्लान बनाया. 2 सितम्बर के दिन सलोनी और पंकज गोपनीय तरीके से बस में बैठ कर दलोट पहुँच गए. दलोट से जावरा गए. जावरा से रेल पकड़ पर रतलाम पहुचे. रतलाम ये दोनों देर तक रुके, फिर वहां ट्रेन पकड़ पर मुंबई चल दिए. मुंबई से फिर ये लोग मध्य प्रदेश के विदिशा गए. विदिशा से भोपाल रवाना हुए. भोपाल से सीहोर गए. सीहोर में देर रात तक रेलवे स्टेशन पर रहे. यह एक ऐसा क्षण था, जब ये पकड़ में आ सकते थे. ट्रेन लेट थी, फिर भी दोनों संदिग्ध रूप से रेलवे स्टेशन पर घूम रहे थे. पुलिसकर्मियों ने इनसे पूछताछ कि, तो पंकज ने बताया की यह बच्ची मानसिक रूप से बीमार है. बच्ची ने भी कहा कि यह युवक उसके पिता सामान है, और उसे आपत्ति नहीं है. दोनों ने दरगाह पर जाने की बात कही. संतुष्टि होने पर पुलिस ने इन्हें छोड़ दिया. यहाँ से लम्बा सफ़र कर ये फिर रतलाम पहुंचे. इस दरमियान पुलिस की टीम मुंबई में भी सरगर्मी से तलाश कर रही थी, जहाँ तलाश में कुछ परिजन भी थे. पुलिस के आने की भनक पंकज को लग गई थी, ऐसे में वे मुंबई छोड़ चुके थे. इसके बाद एक और ऐसा क्षण आया जब दोनों की गिरफ़्तारी होने वाली थी. पंकज का फोन चालु हुआ, लेकिन पहले ही किसी ने कॉल कर दिया, जहाँ से पंकज को पुलिस की भनक लग गई, जिस वजह से ये रफू-चक्कर हो गए. अब इन्होने ट्रेन के बजाय बस का रास्ता अपनाया. बस से ये उज्जैन पहुंचे. वहां से लोकल ट्रेन पकड़ी. इस पूरे लम्बे सफ़र के बाद आखिर में ये जैसे-तैसे रतलाम पहुंचे. अब तक पुलिस आरोपी और बालिका के फोटो को सोशियल मिडिया पर फैला चुकी थी. चप्पे-चप्पे पर दोनों का इंतजार हो रहा था. रतलाम में एक चौराहे पर पुलिसकर्मियों द्वारा दोनों को पकड़ लिया गया. फोटो से मिलान करने पर दोनों वही निकले, और ऐसे पुलिस को बड़ी कामयाबी हाथ लगी... रतलाम से दोनों को प्रतापगढ़ लाया गया. जहाँ बालिका को परिजनों को सरक्षित सौंपा गया.
श्री कालू राम रावत, एसपी : गत 2 सितम्बर को प्रतापगढ़ के निजी स्कूल की छात्रा को अध्यापक ले गया था. इस पर आपराधिक प्रकरण पंजीबध था. 5-6 पुलिस टीम प्रतापगढ़ जिले के अलावा रतलाम, उज्जैन, मुंबई और सीहोर थी, पुलिस ने बड़ी मेहनत की. तथ्य जुटे. जहाँ जहाँ तथ्य मिले, वहां पुलिस से सहयोग किया. रतलाम हमने दोनों को डिटेंन किया. बालिका का चिकित्सा परिक्षण और जांच कराई जा रही है. इसमें नाबालिग छात्रा का अपहरण, उसके साथ लैंगिक अपराध की धाराएं लगाईं है...
कार्रवाई के बाद मानों माहौल ही बदल गया है. परिजनों समेत पुलिस के चेहरे पर भी मुस्कुराहट है. सलोनी की तलाश ख़त्म हो चुकी है! पुलिस की इस कामयाबी के बाद पूरे जिले ने चैन की सांस ली है. प्रतापगढ़ एसपी कालूराम रावत को बधाइयाँ मिलने का दौर जारी है. क्योंकि अब सलोनी सुरक्षित घर आ चुकी है, जिसकी माँ ने 9 दिनों में पहली बार रोटी का कोर खाया है.
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