प्रतापगढ़ का जिला चिकित्सालय मात्र कहने को ही "जिला" चिकित्सालय है... क्योंकि यहाँ डिलेवरी तक के लिए प्रसुताओं को दर-दर की ठोकरे खानी पड़ रही है. कुछ माह पूर्व एक मात्र गायनोलोजिस्ट के रिटायरमेंट के बाद यहाँ पूरी व्यवस्था चरमरा गई. यहाँ डिलेवरी करने के लिए गायनोलोजिस्ट नहीं होने से लगभग हर एक केस उदयपुर भेजा जा रहा है. प्रतापगढ़ से उदयपुर की दूरी 180 किलोमीटर है, ऊपर से रास्ता इतना ऊबड़-खाबड़ है कि पहुँचते-पहुँचते 6-7 घंटे लग जाते हैं. ऐसे में प्रस्तुओं की जान पर भी खतरा मंडराने लगता है. सीरियस केस में तो दिक्कत और भी बढ़ जाती है. हालत ज्यादा खराब हो तो प्रसुताओं को किसी निजी चिकित्सालय की शरण लेनी पड़ती है. प्रतापगढ़ में एक जिला चिकित्सालय के अलावा कोई बड़ा निजी चिकित्सालय नहीं है, जहाँ मरीजों को सारी सुविधा मुहैया हो. ऐसे में परेशानी दोगुनी हो जाती है.
लोगों ने कई बार चिकित्सा विभाग से यहाँ तत्काल गायनोलोजिस्ट लगाने की मांग की, लेकिन सब बेकार साबित हुआ. गायनोलोजिस्ट के रिटायरमेंट के बाद चिकित्सा विभाग के अधिकारीयों ने इस बात की सुध तक नहीं ली. उदयपुर संभाग के चिकित्सा विभाग संयुक्त निदेशक आर.एन. बैरवा से जब बात की गई, तो वे औपचारिकता करने में मशगूल दिखाई दिए!
आर. एन. बैरवा, संयुक्त निदेशक, उदयपुर संभाग : गायनोलोजिस्ट का इंतज़ाम कर रहे हैं, रिटायर्ड डॉक्टर से कहा है अभी तो वो जल्दी आ जाएंगे. हमारा ध्यान है इस तरफ. सरकार भी चिंतित हैं. हम कोशिश कर रहे हैं पूरी. सुध तो रोज़ लेते हैं, रोज़ बात करते हैं. एक्शन तो यही है कि डॉक्टर आ रहे हैं. सरकार ने यह तक कह दिया कि जो सेलेरी मांगे, देने को तैयार हैं...
चिकित्सा विभाग की इस लापरवाही का खामियाजा उन प्रसुताओं को भुगतना पड़ रहा है, जिनके पास शरण लेने के लिए जिला चिकित्सालय के अलावा और कोई जगह नहीं है. अब विभाग को चाहिए कि इस बड़ी परेशानी की और गंभीरता से ध्यान देते हुए जल्द ही गायनोलोजिस्ट की व्यवस्था करे, ताकि यही महिलाओं की डिलेवरी की जा सके...
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